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गीत (गीतिका छंद)/सतविन्द्र कुमार

भारती को अब नहीं फिर से सताना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए

आज अपने देश में जो ये घृणा का दौर है
पागलों ने सब किया है ये नहीं कुछ और है
नफरतों को बेचते जो काम ऐसे कर रहे
बांटते हैं देश को बस जेब अपनी भर रहे
उन सभी के चेहरे से पट हटाना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए।।१।।


देश के जो रक्षकों को पत्थरों से मारते
दुश्मनों से जा मिलें वो क्या कभी हैं हारते
आज मिलकर हम सभी उत्तर उन्हें देते चलें
साथ आएँ वो हमारे या विदा लेते चलें
देश अपने से उन्हें अब तो भगाना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए।।२।।

जो रहे गद्दार सारे क्यों उन्हें हम सह रहे?
जो सदा से देश को ही बाँटने की कह रहे
उन सभी को अब नहीं रहना यहाँ ये सोचलें
बाँध अपने बिस्तरों को वे यहाँ से तो चलें
सह नहीं सकते उन्हें यूँ अब जताना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए।।३।।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2016 at 11:01pm

देश भक्ति भावना से सराबोर इस गीतिका के लिए दिल से बधाई लीजिये आद० सतविन्द्र  भैया |शुभकामनायें 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 4, 2016 at 6:41pm
आपको रचनाकर्म अच्छा लगा।इसने सार्थकता प्राप्त की।हार्दिक आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी।
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2016 at 8:08am

वाह ! वाह ! तीनों बंद सुंदर रचे हैं. उन्माद की सामयिक घटना पर गीतिका छंद आधारित सुंदर गीत रचा है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी. सादर.

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 8:42pm
आदरणीय सुरेश फौजी भाई प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया।दिल ने कहा हमने लिखा।सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 3, 2016 at 8:27pm
आदरणीय सतविंदर भाई आज के समय में ऐसे ही साहित्य की जरूरत है। हम फौजियों के बलिदान को तभी सम्मान मिल सकता है। दिल की गहराईयों से बधाई प्रेषित है ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 5:02pm
बहुत् बहुत हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा दी।नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 5:00pm
श्रद्धेय सौरभ सर सादर वन्दे!आपसे प्रोत्साहन पाकर अभिभूत हूँ।आपके कहे अनुसार ऐसी ग़ज़लों को पढ़ने का प्रयास करूँगा।सादर आभार संग नमन श्रद्धेय !
Comment by pratibha pande on August 2, 2016 at 8:17pm

इस  ऊर्जा से भरे  सामयिक गीत पर ढेरों बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सतविंदर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2016 at 5:51pm

आपके प्रयास से हार्दिक प्रसन्नता हुई है आदरणीय सतविन्द्र जी. 

गीतिका छन्द उर्दू बहर फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन के समकक्ष है. अतः ऐसी व्यवस्था में अच्छी-अच्छी नज़्में भी कही गयी हैं. आप चाहें तो ढूँढ कर पढ़ सकते हैं. इससे कथ्य और स्ंप्रेषणीयता में आशातीत सुधार होगा. यह अवश्य है कि आपका प्रयास वाकई श्लाघ्नीय है. 

किन्तु पहली पंक्ति में ही फिर और सताना के बीच एक गुरु का लोप हो गया है. यह अवश्य ही टंकण त्रुटि है. सुधार लीजियेगा.

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 2, 2016 at 3:40pm
आभार आदरणीय गिरिराज जी नमन।

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