For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुण्डलिया छंद

नर-नारी-पशु-खग-विटप, हुए सभी बेहाल।
यू पी और बिहार में, हुई बाढ़ विकराल।।
हुई बाढ़ विकराल, काल सम बढती नदियाँ।
डूबे हर घर-बाग-खेत सब डूबी गलियाँ।।
प्रलय रूप धर आज, प्रकृति ज्यों उतरी भू पर।
ये उसका प्रतिशोध, विचारोगे कब हे! नर?

छप्पय छंद

कहीं बाढ़ विकराल, कहीं नर जल को तरसें।
कहीं सूखते खेत, कहीं घन अतिशय बरसें।।
कैसा है यह रूप, प्रकृति का कहा न जाए।
दोषी नर ही स्वयं, तभी तो दुख अति पाए।
नर नित्य प्रकृति का कर रहा, दोहन निज अनुसार है।
भूकम्प-बाढ़ के रूप में, कुपित प्रकृति की मार है।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 519

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on September 1, 2016 at 9:22pm
वाह बहुत सुन्दर लिखा आपने ।
Comment by रामबली गुप्ता on August 31, 2016 at 10:45am
हृदयतल से आभार आद० गोपाल नारायण जी आपके सुझावों से कविता को और भी निखरने का अवसर प्राप्त होता है। आपके सुझावों के अनुरूप ' बढ़ी बाढ़ विकराल' को 'हुई बाढ़ विकराल' कर लिया है तथा 'सुरसरि' के स्थान पर 'नदियाँ' कर लिया है। पुनः देख लीजियेगा। पुनश्च आभार
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2016 at 8:07pm

आ० रामबली जी आप उन रचनाकारों में है जिन्हें पढने की इच्छा होती है , कुण्डलिया में  बढ़ी  बाढ़ का क्या अर्थ है बाढ़  तो बढ़ने से ही बना है , दूसरी बात सुरसरि की प्रतिष्ठा उसके मोक्षदायिनी स्वरुप से है उसे काल सम दर्शाना मेरी समझ में  संस्कृति की संगति  में नहीं है  . छप्पय का प्रारंभ बहुत अच्छा है आगे श्रम में कुछ कमी  मुझे लगती है हो सकता है ऐसा न हो . सादर .

Comment by रामबली गुप्ता on August 29, 2016 at 10:47pm
हृदय से आभार आद० सुरेश कुमार जी
Comment by रामबली गुप्ता on August 29, 2016 at 10:46pm
हृदय से आभार आद समर कबीर साहेब
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 29, 2016 at 5:36pm
आदरणीय श्री राम बली गुप्ता जी सुन्दर छंद रचना पर हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Samar kabeer on August 29, 2016 at 2:45pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,बाढ़ से हुई तबाही पर बहुत बढ़िया कुण्डलिया छन्द हुए हैं,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
10 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service