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मई जून का महीना आग बरसाता हुआ सूरज ऊपर से सामर्थ्य से ज्यादा भरी हुई खचाखच बस, पसीने से बेहाल लोग रास्ता भी ऐसा कहीं छाया या हवा का नाम निशान  नहीं बस भी मानों रेंगती हुई चल रही हो| एक को गोदी में एक को बगल में बिठाए बच्चों को लेकर रेवती सवारियों के बीच में भिंची हुई बैठी थी| मुन्नी ने पानी माँगा तो रेवती ने बैग से गिलास निकाल कर पैरों के पास रक्खे हुए केंपर से बर्फ मिला ठंडा ठंडा पानी दोनों बच्चों को पिला दिया |पानी देखकर न जाने कितने अपने होंठों को जीभ से गीला करने लगे|

“बहन जी थोड़ा पानी मुझे भी देदो” एक सवारी ने कहा| रेवती ने उसे पानी  दे दिया |

 “ बेटी  थोड़ा पानी मुझे भी देदो” किसी वृद्ध व्यक्ति ने कहा रेवती ने उसे भी दे दिया |पास खड़े एक दो बच्चों को भी पिला दिया |

इस तरह कई लोगों को उसने पानी पिला दिया केम्पर में थोड़ा सा ही पानी बचा था |

थोड़ी देर बाद उसके बच्चों ने फिर पानी माँगा तो पानी पूरा नहीं पड़ा कम रह गया बच्चों  ने रोना शुरू कर दिया|

 “बस पँहुच रहे हैं बेटा” बार बार कहते हुए रेवती कुछ दूर तक बच्चों को फुसलाती रही |

“कितनी बेवकूफ है ये औरत सारा पानी बाँट दिया अब बच्चों को रुला रही है” कहीं  से आवाज आई|

 बस में अचानक ब्रेक लगा| सड़क के एक किनारे बस को रोककर ड्राइवर गायब हो गया | गर्मी में सब परेशान ड्राइवर को कोसने लगे | थोड़ी देर में ड्राइवर हाथ में दो पानी की ठंडी बोतलें लेकर बस में आया और रेवती को देते  हुए बोला बेटी बच्चों को पिला दो

रेवती हैरानी से देखती हुई बोली “ अंकल इनके पैसे ”.....

“नहीं बेटी रहने दे” ड्राईवर उसकी बात पूरी होने से पहले ही बाकी सवारियों की तरफ घूरते हुए  बोला “जब तू 'बेवकूफ औरत' अपने बच्चों की फिक्र किये बिना इस बस के बीस लोगों की प्यास बुझा सकती है तो क्या मैं इन दो बच्चों की प्यास नहीं बुझा सकता”|  

मौलिक एवं अप्रकाशित           

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2016 at 8:15pm

बेहतरीन /लाजवाब  आदरणीया दीदी

Comment by pratibha pande on September 1, 2016 at 7:19pm

   शराफत अच्छाई  आजकल   दकियानूसी बातों की श्रेणी में आती जा  रही है  ,हर जगह सिर्फ फायदा ढूँढने की मानसिकता हावी  हो गई है ..ऐसी स्थिति में आपकी कहानी जैसे वाकये धूप में ढंडी छाँव जैसे हैं ..सकारात्मकता से भरी इस कहानी के लिए आपको साधुवाद और बधाई आदरणीया राजेश जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 1, 2016 at 5:09pm
सच कहा आदरणीया दी । बहुत बढ़िया कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on September 1, 2016 at 3:23pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत उम्दा सन्देश दे रही है आपकी लघुकथा,सच है आज के दौर में भलाई करने वाले को लोग बेवक़ूफ़ ही कहते हैं,इस सार्थक रचना के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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