प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज
वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज |
वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश
परदेशी हम देश में, लगता है परदेश |
लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग
हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग |
हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद
अंग्रेज भी किये नहीं, तू सुन अंतर्नाद |
संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार |
बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल
लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल |
हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान
विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान ?
प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार
जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार |
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रामबली जी , विस्तृत विश्लेषण के लिए धन्यवाद | आपका कहना् बिलकुल सही है कि प्रत्येक दोहा अपने आप में पूर्ण होता है ; किसी दुसरे दोहे पर निर्भर नहीं होता है जैसे ग़ज़ल का हर शेर; पंरतु कुछ मुसल्सल ग़ज़ल होते हैं जिसमे परोक्ष रूप में अर्थ की दृष्टि से एक दुसरे से जुड़े होते हैं | मैंने यहाँ एक ही विषय पर सभी दोहे लिखे हैं जिसका विषय है आज का "लोकतंत्र " शीर्षक से | इसीलिए पढ़ते वक्त पाठक के दिमाग में राजनीतिक दृश्य ही घुमती रहेगी ; इसीलिए आज़ादी के बाद बुनियाद को किसने हिलाया और किसको अंतर्नाद सुनने के लिए कहा गया है,समझने में किसी को दिक्कत नहीं होगी | परिवार वाद से जुड़े सभी को रक्तबीज के संतान कहा गया है, जिनकी संताने आजादी के बाद से एक के बाद सत्ता पर आसीन होते आ रहे है | इसे भी समझने में किसी दिक्कत नहीं होगी | हाँ आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ कि हर दोहा जब अलग से पढ़ा जाय तो उसका अर्थ बिना किसी दिक्कत के समझमें आना चाहिए | इसका प्रयास करेंगे | सादर
आदरणीय सुशील समा जी, दोहे आपको अच्छे लगे जानकर ख़ुशी हुई | प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद |
आदरणीय समर साहिब आदाब और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं | ईद मुबारक हो आपको और सभी बंधुओं को |
दोहे की तारीफ के लिए तहे दिल से धन्यवाद | आपके सुझाव के अनुसार सुधार कर रहा हूँ | सादर
आदरणीय वर्तमान को चित्रित करते सार्थक दोहों के लिए हार्दिक बधाई। आ. समर कबीर साहिब द्वारा इंगित की गई त्रुटियों से मैं सहमत हूँ।
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