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ढलक गया .... (क्षणिकाएं )

ढलक गया .... (क्षणिकाएं )
१.
बंद था
एक लम्हा
पलकों की मुट्ठी में
सह न सका
दस्तक
याद की
और
ढलक गया
हौले से
.... ... ... ... ... ...
२.
था
एक ख़्वाब
जो
हकीकत से पहले
जाने कब
हकीकत में
ख्वाब हो गया
.... .... .... .... .... ....
३.
वो
ज़िदंगी का
बीता कल था

जिया मरके
जिसमें
वो सुहाना पल था

वो पल
सुख का
रूह से 
बतियाता रहा
मारने के बाद भी

सुशील सरना 

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on September 16, 2016 at 8:53pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपनी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से सुशोभित करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on September 16, 2016 at 8:52pm

आदरणीया राजेश कुमारी ही क्षणिकाओं के मर्म को अपनी सहमति देती प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 15, 2016 at 11:11pm

वाह !  बहुत सुंदर क्षणिकाएं हैं आदरणीय सुशील सरना साहब. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2016 at 10:52pm

वाह्ह्ह  बेहतरीन क्षणिकाएं बहुत बहुत बधाई आद० सुशील सरना जी |

Comment by Sushil Sarna on September 15, 2016 at 3:37pm

आदरणीय   सुरेश कुमार 'कल्याण'  जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय सराहना से उपकृत हुई।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:13pm
आदरणीय श्री सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर क्षणिकाओं के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Sushil Sarna on September 14, 2016 at 7:28pm

आदरणीय सौरभ सर आपकी मधुर प्रतिक्रिया प्रस्तुति को नसीमे सहर सी आत्मविभोर कर गयी। आपका तहे दिल से शुक्रिया सर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2016 at 4:29pm

आदरणीय सुशील सरनजी, आपकी क्षणिकाएँ प्रभावी हैं, हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Sushil Sarna on September 14, 2016 at 4:06pm

आदरणीय  सुनील प्रसाद(शाहाबादी)  जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय सराहना से उपकृत हुई।

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 14, 2016 at 2:58pm
बहुत सुंदर क्षणिकाएँ आदरणीय बधाई।

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