For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुढ़ापे का सफ़र

बुढ़ापे की पुकार

सहम जाता हूँ मैं
रात के सन्नाटे से
ना छोड़ना मुझे बेटा
कभी किसी बहाने से
मैं तब भी था भूखा जब
तेरी पैंट फट गयी थी
और तू ले गया था
पैसे मेरे सरहाने से
तब तू रोया करता था
हँसी हमें सूझती थी
आज हँसी तुझे भी
आती हैं पर
मेरे रो जाने से
मालूम है मुझे भी
कंधों पर बोझ तेरे
ज़रूरत से ज़्यादा है
पर मेरे कंधों के भोज
से तेरा बोझ आधा है
तुम तीनों बच्चे और
तेरे दादा दादी साथ थे
घर सूना हो गया था
तेरी माँ के चले जाने से
मैं जानता हूँ
वृद्ध आश्रम में यार
बोहत मिलते हैं पर
इस आँगन के फ़ूल
वहाँ नहीं खिलते हैं
लोग पूछेंगे मोहन
तेरे पिता कहा गए
सुखी डाल पर सूखे
कपड़े सूखते थे
कहाँ गए

बाप को रुला के
फकर से खड़ा है तू
माथे पर नहीं है तेरे
लकीर शर्माने की
मुझे भी अब आदत
हो गयी नींद में
बड़बड़ाने की
सुबह होते ही तुझसे
यूँ ही
फटकार ना मिले
उम्मीद अब नहीं रही
तुझसे प्यार एतबार की

ज्ञान नहीं आया तुझे
दो अक्षर पढ़ जाने से
चल ले चल उस सन्नाटे
में तू ,मुझे किसी बहाने से
मौलिक अप्रकाशित

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 1, 2016 at 1:51pm

वाह ! अच्छी अभिव्यक्ति है आदरणीया दीपू जी सादर.

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 10:48pm

मार्मिक प्रस्तुति ...बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2016 at 2:25pm

मार्मिक प्रस्तुति | अच्छा  प्रयास | कुछ त्रुटिया रह गई, जैसे - पैसे मेरे सरहाने (सिरहाने) से, पर मेरे कंधों के भोज (बोझ)
से तेरा बोझ आधा है, बोहत या बहुत | सुंदर रचना के लिए बधाई 

Comment by S.S Dipu on September 14, 2016 at 11:09pm
धन्यवाद आप सभी का । आपके इतने प्रोत्साहन भरे शब्दों से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है ।
Comment by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:35pm
भाव अच्छे लगे।बधाई अदानीया
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:24pm
आदरणीया दीपू जी यथार्थ को दर्शाती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by amita tiwari on September 14, 2016 at 8:16pm

मार्मिक 

Comment by Meena Pathak on September 14, 2016 at 2:01pm

मार्मिक प्रस्तुति ...बधाई 

Comment by Sushil Sarna on September 14, 2016 at 1:48pm

आदरणीया  Dipu mandrawal     जी इस मार्मिक यथार्थ की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। 

Comment by Samar kabeer on September 14, 2016 at 11:55am
मोहतरमा दीपू जी आदाब,बहुत ही मार्मिक कविता लिखी आपने,आज के समय में यही ही रहा है,बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति पर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service