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एक तरही ग़ज़ल(समीक्षार्थ)

बह्र:1222 1222 1222 1222

नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं
छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।

यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता
गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।

गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की
बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।

भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब
"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"

मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो
भुला अपनी ही'भाषा को हमारे रक्स करते हैं।

गमों में खो गया सारा उजाला था जो' जीवन में
कि छुपकर अब्र के पीछे सितारे रक्स करते हैं।

गुहर की आस कब कोई न हीरे भी हमें भाते
विरह से दिल में दहके जो अंगारे रक्स करते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:16pm

अच्छी रचना हुई है आदरणीय सतविन्द्र जी |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 28, 2016 at 5:34pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।वांछित संशोधन की कोशश की है।कृपया पुनः अवलोकन क्Rइन्।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 27, 2016 at 1:05pm
आदरणीय रवि शुक्ल जी सादर।हौंसलाफ़ज़ाई एवं मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार सँग नमन!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 1:55pm

अच्छी कोशिश है आदरणीय सतविंदर जी शेष गुणिजनों ने कह ही दिया है

Comment by Ravi Shukla on September 21, 2016 at 1:30pm
आदरणीय सतविंद्र जी ग़ज़ल की बह्र को आपने अच्छी तरह निभाया है बधाई स्वीकार करे उस्ताद लोगो की राय अर् चुकी है उसके मुताबिक जरूरी संशोधन करने का निवेदन है ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 21, 2016 at 12:45pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर।आपको यह प्रयास दुरुस्त लगा ,यह सार्थक हुआ।आदरणीय फव्वारे की जगह फवारे शब्द किया था जो कि वर्तनी के अनुसार गलत था।इस मिसरे को ही दोबारा सोचना पड़ेगा।आपके मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 21, 2016 at 12:39pm
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी आपको यह प्रयास पसन्द आया,यह सार्थक हुआ।सादर हार्दिक आभार।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 21, 2016 at 12:38pm
आदरणीय सुरेश भाई जी ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए सादर हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 9:26am

आदरणीय सतविन्द्र भाई , कठिन रदीफ ले कर आपने बड़ी सरलता से शे र कह लिये , क्या बात है ! हार्दिक बधाइयाँ । अंतिम शेर  फव्वारे  के कारण बेबहर हो गया है , देखियेगा ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 20, 2016 at 10:32pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल कही है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

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