कभी हँसते कभी रोते समय की कानों में आहट
अरमानों की उतरती-चढ़ती लम्बी परछाइयाँ
आकारहीन अँधेरे में अंधों की तरह
अभी भी हम एक-दूसरे को खोजते हैं
इस खोज में तेरे आँसुओं ने मुझको
बहुत दिया
इतना दिया कि मुझसे आज तक
झेला नहीं गया
काँपती परछाइयों में तुम आई, हर बार
मन का पलस्तर उखड़ गया
स्वर तुम्हारे, कभी स्वर मेरे रुंधे हुए
खोखले हुए
तुमको, कभी मुझको सुनाई न दिए
पर सुन लेती हैं देख लेती हैं आँसुओं से
डबडबाई हमारी आँखें
वह, जो वह परछाइयाँ कह नहीं पाती
अँधेरी कोठरी में भी यादों के झरोखों से
जागती-सिसकती रातों में
खुरदुरी सीढ़ियाँ उतरते-चढ़ते ख्यालों में
तुम मुझसे कह जाती हो ऐसे में
कुछ मैं भी तुमसे कह देता हूँ
ज़िन्दगी के गड्ढों में पड़े वह फ़लसफ़े
पर हर सुबह होने से पहले
डरती हैं
वह डबडबाई आँखें
देख न ले कोई जान न ले सदा का प्रश्न
कल की रात उन आँखो का अकेला एकान्त
कि-त-ना अंधकारमय था
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
प्रिय मित्र बृजेश जी,
अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणी्य बृजेश जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।
// हमेशा की तरह भावों की असीम गहराइयों में उतरते उबरते अल्फ़ाज //
बहन राजेश जी, आपने मुझको इतना मान दिया, और मुझसे ही बहुत बड़ी भूल हो गई....
अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणी्या राज जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।
आपसे मिली सराहना अमूल्य है, आदरणीय गोपाल नारायन जी
पर सुन लेती हैं देख लेती हैं आँसुओं से
डबडबाई हमारी आँखें
वह, जो वह परछाइयाँ कह नहीं पाती
पर हर सुबह होने से पहले
डरती हैं
वह डबडबाई आँखें
देख न ले कोई जान न ले सदा का प्रश्न----------------अद्भुत आदरणीय निकोर जी . इस करुण रचना के लिए आपको शत शत प्रणाम .
//हृदय की गहन मौनता को आपने अपने शब्दों कितनी सुंदर अभिव्यक्ति दी है//
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर कबीर जी।
हमेशा की तरह भावों की असीम गहराइयों में उतरते उबरते अल्फ़ाज बहुत खूब दिल से बधाई इस सुंदर प्रस्तुति पर आद० विजय निकोर जी
पर हर सुबह होने से पहले
डरती हैं
वह डबडबाई आँखें
देख न ले कोई जान न ले सदा का प्रश्न
कल की रात उन आँखो का अकेला एकान्त
कि-त-ना अंधकारमय था
वाह आदरणीय निकोर साहिब वाह .... हृदय की गहन मौनता को आपने अपने शब्दों कितनी सुंदर अभिव्यक्ति दी है। इस दिलकश पेशकश पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online