For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी हँसते कभी रोते समय की कानों में आहट

अरमानों की उतरती-चढ़ती लम्बी परछाइयाँ

आकारहीन अँधेरे में अंधों की तरह

अभी भी हम एक-दूसरे को खोजते हैं

इस खोज में तेरे आँसुओं ने मुझको

बहुत दिया

इतना दिया कि मुझसे आज तक 

झेला नहीं गया

काँपती परछाइयों में तुम आई, हर बार

मन का पलस्तर उखड़ गया

स्वर तुम्हारे, कभी स्वर मेरे रुंधे हुए

खोखले हुए

तुमको, कभी मुझको सुनाई न दिए

पर सुन लेती हैं देख लेती हैं आँसुओं से

डबडबाई हमारी आँखें

वह, जो वह परछाइयाँ कह नहीं पाती

अँधेरी कोठरी में भी यादों के झरोखों से

जागती-सिसकती रातों में

खुरदुरी सीढ़ियाँ उतरते-चढ़ते ख्यालों में

तुम मुझसे कह जाती हो ऐसे में

कुछ मैं भी तुमसे कह देता हूँ

ज़िन्दगी के गड्ढों में पड़े वह फ़लसफ़े

पर हर सुबह होने से पहले

डरती हैं

वह डबडबाई आँखें

देख न ले कोई जान न ले सदा का प्रश्न

कल की रात उन आँखो का अकेला एकान्त

कि-त-ना  अंधकारमय  था

             --------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 11:02am

प्रिय मित्र बृजेश जी,

अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणी्य बृजेश जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 11:00am

// हमेशा की तरह भावों की असीम गहराइयों में उतरते उबरते अल्फ़ाज //

बहन राजेश जी, आपने मुझको इतना मान दिया, और मुझसे ही बहुत बड़ी भूल हो गई....

अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणी्या राज जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on November 24, 2016 at 2:20pm

आपसे मिली सराहना अमूल्य है, आदरणीय गोपाल नारायन जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2016 at 7:39pm

पर सुन लेती हैं देख लेती हैं आँसुओं से

डबडबाई हमारी आँखें

वह, जो वह परछाइयाँ कह नहीं पाती

 

पर हर सुबह होने से पहले

डरती हैं

वह डबडबाई आँखें

देख न ले कोई जान न ले सदा का प्रश्न----------------अद्भुत आदरणीय निकोर जी . इस करुण  रचना के लिए आपको शत शत प्रणाम .

Comment by vijay nikore on November 17, 2016 at 3:29pm

//हृदय की गहन मौनता को आपने अपने शब्दों कितनी सुंदर अभिव्यक्ति दी है//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।

Comment by vijay nikore on November 17, 2016 at 7:54am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर कबीर जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 15, 2016 at 9:29pm
अंतस के भावों को शब्दरूपी मोतियों में ढाल कर एक खूबसूरत माला...बहुत बहुत बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 15, 2016 at 9:13pm

हमेशा की तरह भावों की असीम गहराइयों में उतरते उबरते अल्फ़ाज बहुत खूब दिल से बधाई इस सुंदर प्रस्तुति पर आद० विजय निकोर जी 

Comment by Sushil Sarna on November 15, 2016 at 7:20pm

पर हर सुबह होने से पहले
डरती हैं
वह डबडबाई आँखें
देख न ले कोई जान न ले सदा का प्रश्न
कल की रात उन आँखो का अकेला एकान्त
कि-त-ना अंधकारमय था

वाह आदरणीय निकोर साहिब वाह .... हृदय की गहन मौनता को आपने अपने शब्दों कितनी सुंदर अभिव्यक्ति दी है। इस दिलकश पेशकश पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by Samar kabeer on November 15, 2016 at 5:07pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,बहुत भावपूर्ण कविता हुई है,बहुत अच्छा लगा पढ़ कर,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service