For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल के रिश्तों की बगिया में जब भी पतझड़ आता है.
ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...

दिल को तो पतझड़ में भी
जाने क्यों सावन याद रहे,
दिल कोई तिनका है क्या
जो हालातों के साथ बहे?
सावन इसने अपनाया,ये पतझड़ भी अपनाता है...
ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...

बागबान बन कर जिसने
रिश्तों की हर डाली सींचीं,
वो पागल क्या समझेगा
क्यों सावन ने बाँहें खींचीं?
इंतज़ार में सावन के वो फिर-फिर पलक बिछाता है...
ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...

जाते-जाते खुशियों के फूलों
ने जब दामन छोड़ा,
तन-मन ने यादों की मिट्टीे
से अपना नाता जोड़ा,
कतरा-कतरा दिल सौंधी यादों का इत्र लगाता है...
ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...

निश्छल भावों का दरिया
फिर कोंपल नई खिलाएगा,
जल्दी रूखे दिन बीतेंगे
सावन फिर से आएगा,
मन ही मन दिल मगन-मगन अलमस्त मल्हार सुनाता है...
ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by narendrasinh chauhan on December 23, 2016 at 5:46pm

आदरणीय, खूब सुन्दर रचना

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 22, 2016 at 9:37am

ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है... - पतझड़ में भी सावन का अहसास कराती मन की हर्षित बगिया एक विश्वास जगती है |

मनोहारी गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई बहन डॉ. प्राची सिंह जी 

Comment by नाथ सोनांचली on December 21, 2016 at 4:07am
आद0 डॉ प्राची सिंह जी सादर अभिवादन,क्या उम्दा गीत पढने को मिली, वाकई गजब। प्रशंशा में शब्द कम है। आपको कोटिश बधाइयाँ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2016 at 1:11am

आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी, आपने पतझड़ और सावन के बहाने दिल की बात सुनाता बहुत सुन्दर गीत लिखा है-

निश्छल भावों का दरिया
फिर कोंपल नई खिलाएगा,
जल्दी रूखे दिन बीतेंगे
सावन फिर से आएगा,
मन ही मन दिल मगन-मगन अलमस्त मल्हार सुनाता है...
ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है.................................... इस आशा जगाती पंक्तियों ने मुग्ध कर दिया. 

इस शानदार गीत की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय विकास जी। मतला, गिरह और मक़्ता तो बहुत ही शानदार हैं। ढेरो दाद और…"
27 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलक राज जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल के हर शेअर को फुर्सत से जांचने परखने एवं सुझाव पेश करने के…"
41 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. जयहिंद रायपुरी जी, अभिवादन, खूबसूरत ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, सादर अभिवादन  आपने ग़ज़ल की बारीकी से समीक्षा की, बहुत शुक्रिया। मतले में…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मिसरा दिया जा चुका है। इस कारण तरही मिसरा बाद में बदला गया था। स्वाभाविक है कि यह बात बहुत से…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service