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दुःख बिसराये
सुख को लाये
ऐसा गीत गाऊँ मैं
खट्टी  मीठी यादों को
थोड़ा सा गुन गुनाऊं मैं
दूर खड़ा पर्वत पुकारे
चलकर उसतक जाऊं मैं
बादलों से बरसे पानी
झूम झूम कर नाचूँ मैं
खेत बुलाये, परिंदे पुकारें
बोली उनकी समझूँ मैं
नाच उठे मनवा मेरा
गीत ऐसा कोई गाऊँ मैं |

बहती नदी , बहता झरना
कलकल इनकी सुन लूँ मैं
किनारे से टकराती लहरों से
कुछ देर बातें कर लूँ मैं
देखकर वहां गोरी कलाई
बैठकर कुछ देर निहारूँ मैं
सूरज की तपती किरणों से
कुछ देर लड़ जाऊं मैं |

इतराती तितलियों को देख
मन ही मन खुश हो जाऊं मैं
भंवरों की मधुर गुंजन से
मंत्र मुग्ध हो जाऊं मैं |

सुंदर धरती , नीला अम्बर
कैसे खुद को रोक पाऊं मैं
देखकर हर सुंदर चीज़ को
फिर एक नया गीत गाऊँ मैं |

मौलिक एवं अप्रकाशित



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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 10:09am

आदरणीया कल्पना जी , सुनदर गीत रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 3, 2017 at 7:59am
धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश सर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 2, 2017 at 11:47pm

आदरणीया कल्पना जी, बहुत अच्छी रचना हुई है। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। सादर।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 9:43pm
आदरणीय महेंद्र जी आपको मेरा यह प्रयास अच्छा लगा सार्थक हुआ मेरा प्रयास । धन्यवाद आदरणीय ।
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 9:41pm
आदरणीया कल्पना जी, बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति है। मेरी तरफ से ढेरों बधाई प्रेषित है। सादर।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 8:45am
धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपाल सर जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 8:41am
आदाब जनाब समर साहब ।प्रथम गीत का प्रयास हुआ है ।आपको पसन्द आया सार्थक हुआ यह प्रयास । तहेदिल से आपका शुक्रिया सर । प्रयास करूंगी बहेतर लिख सकूँ । सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 9:51pm

सुन्दर भाव भीनी , अच्छी लगी . सादर .

Comment by Samar kabeer on January 1, 2017 at 8:43pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
आठवीं पंक्ति में 'बदालों'को "बादलों"कर लीजिये, टाइपिंग मिस्टेक है ।

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