बुलबुल ने छोड़ा पंखों पर
अब बोझा ढोना,
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
अंतर्मन में गूँजी जबसे
सपनों की सरगम,
अपने रिसते ज़ख्मों पर रख
हिम्मत का मरहम,
झूठे बंधन तोड़ निकलना
सीख चुकी है वो,
बाहों में भर लेगी अम्बर
चाहे जो भी हो,
रहने देगी नहीं अनछुआ
कोई भी कोना....
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
क्यों बाँधे उसके पल्लू में
बस भीगे सावन,
भर लेना है हर मौसम से
अब उसको दामन,
खोलो खिड़की ज़रा हवाऐं
अंदर तो आऐं,
उजली किरणों से सीलन की
नींदें खुल जाऐं,
मन के आँगन में चिंतन के
बीजों को बोना...
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
वाह आदरणीया प्राची जी, नै सुबह की पावन आहट......
मन के आँगन में चिंतन के
बीजों को बोना...
नई सुबह की आहट अब
तुम भी पहचानो ना....
श्रेष्ठ गीत , बधाइयाँ
आदरणीया प्राची जी, कभी कभी आपके गीत पढ़कर बस मुग्ध हो जाता हूँ और घर में सबको गा कर सुनाता हूँ. ये गीत भी बिलकुल वैसा ही है. आज जब से इस गीत को पढ़ा है बस गुनगुना रहा हूँ. अब सोचा प्रतिक्रिया भी लिख दूँ, क्योकि अभी गीत पर प्रतिक्रिया देख रहा हूँ तो केवल दो प्रतिक्रियाएं आई है. हैरान हूँ कि इस मुग्ध करते गीत पर बाकी साथी क्यों नहीं पहुंचें या वे भी मेरी तरह झूम रहे है.
अब गीत पर बात करूँ तो सीधे नई सुबह के सन्दर्भ में गीत का पाठ मनमोहक है लेकिन नई सुबह को जब नारी जागृति के रूपक पर गुनगुनाता हूँ तो बस मुग्ध हो जाता हूँ. खो जाता हूँ. गीत में आपके शब्द सीधे हृदय में प्रवेश करते हैं. जब जब भी आपके गीत पढता हूँ आपके लेखन के प्रति मेरी श्रद्धा और बढ़ जाती है. नत हो जाता हूँ. नमन है आपकी कलम को और आपको. सादर
अभिव्यक्ति पर सराहना के लिए धन्यवाद आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
हौसला अफजाई का शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी
सुझाव अनुसार बदलाव कर रही हूँ
धन्यवाद
आ० प्राची जी , नयी सुबह यानि कि नव वर्ष की आहट बहुत करीने से अभिव्यक्त हुयी है - खोलो खिड़की ज़रा हवाऐं
अंदर तो आऐं,
उजली किरणों से सीलन की
नींदें खुल जाऐं,---------------------- सादर
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