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ग़ज़ल (बहुर-फेलुन फेलुन फेलुन फा )

आगे-आगे बढ़ता चल ,
ग़ैरों की भी सुनता चल ।
बिछुड़ गये जो राहों में ,
फिर तू उनसे मिलता चल ।
तूफाँ से टकराना है ,
हिम्मत कर तू बढ़ता चल ।
नफ़रत के शोलों में भी ,
गीत वफ़ा के लिखता चल ।
माना तेरे दुख बेहद ,
फूलों जैसा खिलता चल ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2017 at 11:20am
आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। इस प्रस्तुति पर ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by रामबली गुप्ता on January 7, 2017 at 7:09am
मात्रा विन्यास सही है। रचना बहरे मीर में है 12 12 को 222 लिया जा सकता है। कुल मिलाकर अच्छी ग़ज़ल हुई है। प्रयासों से कथ्यों में और गम्भीरता आएगी।एक सुझाव है-"गैरों" के स्थान पर "औरों" रखें ज्यादा सुंदर और सटीक रहेगा। हर शेर का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व होता है इसलिए ग़ज़ल में किसी काफ़िये का दो बार आना कोई बुराई नही बशर्ते भाव अलग अलग होने चाहिए। बधाई प्रेषित
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2017 at 10:00pm

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आ० आरिफ जी ,कृपया मात्र विन्यास निम्न प्रकार देखें -

बिछुड़ गये जो राहों में ,

 12     1 2  2  2 2   2
गीत वफ़ा के लिखता चल ।

 2 1  1 2  2    2 2      2
-बढ़ता चल  का  दो  बार प्रयोग खटकता है ------------------------------------- सादर

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