"सर, मिश्राजी का फोन आया था, थोड़ी देर में किसी के साथ आ रहे हैं", जैसे ही वह ऑफिस में आया, सेक्रेटरी ने आकर बताया|
"ठीक है, अंदर भेजने से पहले एक बार मुझसे पूछ लेना", उसने कहा लेकिन उसके चेहरे पर थोड़ी तिक्तता फ़ैल गयी| मिश्राजी उसके अध्यापक थे, जब वह हाई स्कूल में था और पिछले महीने ही वह उनसे मिला था| इस नए स्थान पर पोस्टिंग के समय तो उसे उम्मीद भी नहीं थी कि इस तरह से कोई पुराना परिचित मिल जायेगा, लेकिन मिश्राजी को उसने देखते ही पहचान लिया था| दो बार पहले भी वह आ चुके थे यहाँ लेकिन कभी कुछ कहा नहीं, लेकिन आज किसी के साथ आ रहे हैं तो शायद किसी की सिफारिस होगी|
चाय पीते हुए कुछ फाइलें पढ़ रहा था तभी सेक्रेटरी का इंटरकॉम पर फोन आया "सर मिश्राजी आ गए हैं, एक और व्यक्ति साथ में हैं| मीटिंग रूम में बिठा दिया है, अंदर भेजूं या ?
"भेज दो अंदर", कहते हुए उसने फोन रख दिया| जब तक मिश्राजी अंदर नहीं आये, उसने कई चीजें सोच ली थीं| पिछली जगह का बहुत कड़वा अनुभव था उसका, ऐसे ही एक परिचित ने उसका नाम लेकर विभाग से कुछ गलत काम करवा लिए थे| बाद में उसने उसकी बहुत लानत मलामत की थी|
"नमस्कार बेटे, ये मेरे पडोसी शर्माजी हैं", कहकर मिश्राजी बैठ गए|
उसने भी हाथ जोड़े और रुखाई से उनकी तरफ देखा| थोड़ी देर बैठने के बाद दोनों उठ कर चल दिए तो उसको थोड़ा खटका| लगा कि उसका लहजा शायद ठीक नहीं था तो उसने नम्रता से पूछ लिया "कोई काम था क्या?
मिश्राजी ने पलटकर उसकी तरफ देखा और बोले "शर्माजी को भरोसा नहीं हो रहा था कि तुम इतने सरल और नेकदिल हो, बस इसीलिए ले आया था, हमेशा खुश रहो"|
मिश्राजी जा चुके थे, उसे अपने जजमेंट पर कोफ़्त हो रही थी|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विनय जी, बहुत बढ़िया संदेशप्रद लघुकथा लिखी है. जजमेंटल होने वालों को सावधान किया है आपने. इस जीवंत प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
बहुत बहुत आभार आ तेज वीर जी, बिना पूरी तरह जाने कोई भी निर्णय लेना सही नहीं होता
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी।जीवन में बहुत बार ऐसे मुकाम आते हैं कि आदमी गलत जजमेंट कर जाता है। इसलिये सामने वाले को बिना सुने निर्णय लेना उचित नहीं होता।सुंदर प्रस्तुति।
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