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ग़ज़ल -कि सरकार भी मोतबर आपकी है-- ( गिरिराज भंडारी )

122  122    12 2    122
जिधर भी मैं जाऊँ डगर आपकी है

हवा मे फज़ा में ख़बर आपकी है


महज़ रात थी आपके हक़ में लेकिन

सुना है कि अब हर पहर आपकी है

 

हरिक पुत्र को मुफ़्त मिलती है ममता

तो, ममता भी अब उम्र भर आपकी है

 

रपट कौन लिक्खे सभी आपके हैं

कि सरकार भी मोतबर आपकी है

 

ज़ियारत करें ना करें आप लेकिन

सियासत पे टेढ़ी नज़र आपकी है

 

नज़ीर आपकी अब मैं दूँ भी तो कैसे

हरी-सावनी सी नज़र आपकी है 


*********************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 4:48pm

आदरणीय मो. आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2017 at 4:37pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. आपने बह्र-ए-मुतकारिब के वज्न पर ग़ज़ल कही है लेकिन बह्र-ए-मुतदारिक का वज्न लिख दिया है. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 12, 2017 at 1:55pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आख़री शैर के ऊला मिसरे में "नज़ीर"शब्द स्त्रीलिंग है, इसलिये 'आपका'की जगह "आपकी"करना उचित होगा ।
Comment by Sushil Sarna on January 12, 2017 at 1:12pm

जिधर भी मैं जाऊँ डगर आपकी है
हवा मे फज़ा में ख़बर आपकी है

हरिक काली रातों में छाये थे कल तक
सुना है कि अब दो पहर आपकी है

वाह आदरणीय गिरिराज जी .... क्या बात है ... वर्तमान को जीती इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by Mohammed Arif on January 12, 2017 at 12:54pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब , बेहतरीन ग़ज़ल ! मुबारकबाद कुबूल करें ।

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