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उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

 

उतारो गुम्बद,

 

समेटो खम्भे,

 

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

 

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

 

सुकूँ मिल जाए रूह को 

 

सिर्फ जिसकी एक  झलक पाकर,

 

उसी के सजदे में सर को झुका दो,

 

कि वो इबादत भी है और मोहब्बत भी |

 

 

तुम्हारे चेहरे में मैंने अपना वो ख़ुदा देखा है .....

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Comment by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:33am
Aacharya shri... bahut bahut aabhar..aapne meri rachna padh li...man harshit ho gaya..
Comment by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:31am
Arun ji..rachna pasand karne aur meri hausla afzai karne ke liye bahut bahut aabhar..
Comment by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:30am
hardik aabhar..Shrada ji...
Comment by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:29am
Ashish ji..bilkul thik kaha aapne..wo ishq hi kya jisme thodi bagawat na ho.. bahut bahut shukriya meri sarahana karne ke liye..
Comment by Neelam Upadhyaya on May 30, 2011 at 10:29am
Bahut achhi rachna hai.  Badhayee.
Comment by sanjiv verma 'salil' on May 29, 2011 at 11:20am
सिर्फ तुम्हारे चेहरे में क्यों... खुदा तो हर चेहरे में रहता है. गागर में सागर. बधाई.
Comment by Abhinav Arun on May 29, 2011 at 10:43am
vierndra jee bahut achchhee rachna 11 badhaaee !!
Comment by आशीष यादव on May 28, 2011 at 4:24pm
veerendra bhai bahut khubsurat kawita ke liye badhai swikaar kare. ek umda rachna hai, bagawati rachna hai. bahut khub.
Comment by Veerendra Jain on May 28, 2011 at 12:27pm

protsahit karne ke liye bahut bahut dhanyawad ..Ganesh bhaiya...


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 10:24am
वाह वाह जैन साहिब , बहुत ही खुबसूरत भाव , अच्छी रचना हेतु बधाई स्वीकार करे | उम्मीद है आपकी और भी कृतियाँ और अन्य साथियों की कृतियों पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणियाँ पढने को मिलती रहेंगी |

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