For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किसका हक़ ? (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"नहीं, अनवर मियाँ, यह तो नहीं होने दूंगी!" जुबेदा ने पोटली अपनी ओर खींचते हुए कहा- "मेरे अब्बू के ख़ून- पसीने की कमाई का ज़ेवर है यह और मेरी जमा पूँजी!"

"लेकिन मुझे मिले दहेज़ पर मेरा हक़ है! मैं जो चाहूं, करूँगा!" अनवर ने उसको आँखें दिखाते हुए पोटली फिर अपनी तरफ़ खींच ली।

"है, तुम्हारा हक़ है, और मेरा भी! लेकिन मेरी मर्ज़ी के बग़ैर तुम इसे अपनी अम्मीजान के इलाज़ में हरग़िज़ नहीं लगा सकते!"

"तो क्या तुम उन्हें अपनी अम्मी की तरह नहीं मानतीं!"

"मानती हूँ! लेकिन तुम्हारी अम्मी के तो पैर क़ब्र में लटके हुए हैं ही, मुझे क्यों बरबाद करने पर तुले हुए हो!" इस बार जुबेदा ने अपना सारा ग़ुबार निकालते हुए कहा- "अपने माँ-बाप की बातें मानकर ही तुमने अपने वादे के मुताबिक़ न तो बिना दहेज़ लिए शादी की, न ही मुझे कोई नौकरी करने दी और न ही मुझे आगे की पढ़ाई करने दी! तो अब यही बची-खुची पूँजी ही तो मेरा सहारा है न!" यह कह कर वह बुरी तरह रोने लगी।

"जुबेदा पैसा तो दोबारा कमाया जा सकता है, माँ दोबारा नहीं मिल सकती! कुछ भी हो मैं अम्मीजान का इलाज़ जारी रखूंगा, भले ही तुम्हें छोड़ना पड़े! "

"जो चाहें, करियेगा, लेकिन अब मुझे नौकरी करने और आगे पढ़ने से कोई नहीं रोक सकता, देख लिया तुम्हारा ईमान और तुम्हारी मर्दानगी!"

"मर्दानगी!"

"हाँ मर्दानगी! बाप की छाती पर बैठकर शादीशुदा ज़िन्दगी जीने वाले शौहर के लिए और क्या कहूँ!"

यह सुनकर अनवर ने वह पोटली जुबेदा की तरफ़ फैंक दी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:32am
मेरी इस रचना पटल पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, मिथिलेश वामनकर जी व आदरणीय BAIJNATH SHARMA'MINTU'जी,
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on January 28, 2017 at 4:41pm

बहुत सुन्दर लघुकथा ....बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 25, 2017 at 1:27pm

आदरणीय शेख जी इस शानदार लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई ..आपकी लघु कथाएँ पढ़ते पढ़ते ही इस बिधा में मेरी दिलचस्पी बढ़ी है ..इस रचना प् हार्दिक बधायी के साथ सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 12:33am

आदरणीय उस्मानी जी बढ़िया लघुकथा लिखी है. काश ज़ुबैदा ने इतनी हिम्मत शादी के पहले दिखाई होती. लेकिन वही कुछ मजबूरियां. एक सफल लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई. सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 24, 2017 at 6:30pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर समय देने व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब और जनाब सुरेन्द्र कुमार 'कुशक्षत्रप' साहब।
Comment by नाथ सोनांचली on January 23, 2017 at 8:37am
आद0 शहजाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन, बहुत ही गूढ़ सन्दर्भ में लिखी गयी लघुकथा कई माने में हम सबके इर्द गिर्द घूमती हुयी ही है, बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई ग्रहण करें।
Comment by Samar kabeer on January 22, 2017 at 10:31pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,हमेशा की तरह बहतरीन लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 22, 2017 at 9:27pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर भी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया व हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Mohammed Arif on January 22, 2017 at 8:46pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी, आदाब ! नारी स्वाभिमान को जाग्रत करती लघुकथा के लिए ढेरों मुबारकबाद कुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
22 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
38 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service