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ग़ज़ल - कह दिये , हर वास्ता जाता रहा ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122       212  

दिल से जब नाम-ए ख़ुदा जाता रहा

दरमियानी मो’जिजा जाता रहा

 

ख़ुद पे आयीं मुश्किलें तो, शेख जी

क्यूँ भला हर फल्सफ़ा जाता रहा

 

जो इधर थे हो गये जब से उधर

कह दिये , हर वास्ता जाता रहा

 

अब ख़बर में वाक़िया कुछ और है

था जो कल का हादसा जाता रहा

 

गर हुजूम –ए शहर का है साथ , तो  

जो किया तुमने बुरा जाता रहा

 

आँखों में पट्टी, तराजू हाथ में

जब दिखे, तो हौसला जाता रहा

 

कह ज़दीद, अब का ज़माना और है

वक़्त कल का इश्क़िया, जाता रहा

*********************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

मो' जिजा = चमत्कार , फल्सफा = दर्शन ( शास्त्र ) , ज़दीद = आधुनिक

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Comment by Samar kabeer on January 25, 2017 at 7:29pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

दिल से जब नाम-ए-ख़ुदा जाता रहा
दरमियानी मो'जिज़ा जाता रहा

ऊला मिसरे से सानी मिसरे का रब्त पैदा नहीं हो रहा है,"मो'जिज़ा"
अरबी भाषा का शब्द है,आपने इसका अर्थ चमत्कार लिखा है,मुमकिन है ये अर्थ आपने किसी शब्दकोष में देखा होगा,"मो'जिज़ा"शब्द का अर्थ है,'आजिज़ करने वाला','नबी की करामात'जो सिर्फ़ नबी ही कर या दिखा सकता है ।
इस पस-ए-मंज़र में आपका मतला ऊला मिसरे से मेल नहीं खा रहा है,'मो'जिज़ा'ऐसी चीज़ नहीं जो जाती आती रहे,और नबी भी ये करामात कभी कभी ही दिखाते थे,इसलिये मेरे ख़याल से आपको सानी मिसरा दूसरा कहना चाहिये ।
Comment by Sushil Sarna on January 25, 2017 at 7:29pm

दिल से जब नाम-ए ख़ुदा जाता रहा
दरमियानी मो’जिजा जाता रहा

ख़ुद पे आयीं मुश्किलें तो, शेख जी
क्यूँ भला हर फल्सफ़ा जाता रहा

बहुत खूब आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब ... कितनी सही बात कितने सरलता से आप कह गए. .... नमन आपको और आपकी कल्पनाशीलता को ... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 25, 2017 at 7:27pm
आदरणीय गिरिराज भाईसाब समय के साथ सवालात बदल जाते है समय के साथ खयालात बदल जाते है हमेशा की तरह आपके ग़ज़लों के गुलदस्तर में जुड़ती एक और शानदार कड़ी उर्दू के नए शब्दों का अर्थ मिलने से जहाँ ग़ज़ल को समझने में आसानी होती है इस सम्बन्ध में पूर्व में आपसे निवेदन को मान मिलने से अपार खुशी भी होती है रचना पर हार्दिक बधाई गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं और सादर पर्सनाम के साथ
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 25, 2017 at 7:27pm
आदरणीय गिरिराज भाईसाब समय के साथ सवालात बदल जाते है समय के साथ खयालात बदल जाते है हमेशा की तरह आपके ग़ज़लों के गुलदस्तर में जुड़ती एक और शानदार कड़ी उर्दू के नए शब्दों का अर्थ मिलने से जहाँ ग़ज़ल को समझने में आसानी होती है इस सम्बन्ध में पूर्व में आपसे निवेदन को मान मिलने से अपार खुशी भी होती है रचना पर हार्दिक बधाई गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं और सादर पर्सनाम के साथ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 6:43pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर-दर-शेर दाद-ओ-मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 25, 2017 at 1:46pm
आदरणीय गिरिराज जी सादर अभिवादन, बहुत बढ़िया गजल लगी। मतले से लेकर अंत तक हर ग़ज़ल लाजबाब, दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाये। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2017 at 11:58am

जो इधर थे हो गये जब से उधर

कह दिये , हर वास्ता जाता रहा----waahhhhh bahut sundar 

गर हुजूम –ए शहर का है साथ , तो  

जो किया तुमने बुरा जाता रहा-----haan sach me esaa hi hota hai .

bahut umda ghazal hui daad sweekaren aadrneey giriraj ji .hindi converter kaam nahi kr raha 

 

 

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