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कोंपलें सब खुल रही(गीत)/सतविन्द्र कुमार राणा

गीतिका छ्न्द पर गीत प्रयास(14,12)(तीसरी,दसवीं,सत्रहवीं,छब्बीस वीं लघु)अंत गुरु लघु गुरु

ठंड की ठिठुरन चली मधुमास ज्यों है आ रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा


पीत पहने सब वसन यह प्रीत का मौसम हुआ

अब धरा देखो महकती धूप ने ज्यों ही छुआ

पर्ण अब हैं झूमते सब औ पवन है गा रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।


पीत वर्णी पुष्प चहुँदिक खेत में हैं खिल रहे

सब भ्रमर गाते हुए हर पुष्पदल से मिल रहे

राग औ अनुराग का ये संग सबको भा रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।


नेह से भरकर बड़े बच्चे बनें हैं आज सब

हाथ में हैं डोर उनके हैं पतंगें ख़ास अब

अब गगन हर रंग को ये देखलो दमका रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।


मातु शारद को भजें हम पूजतें हैं ज्ञान को

छ्न्द गीतों से बढ़ाते भारती के मान को

की सफल कोशिश किसी ने नाम है उसका रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 2, 2017 at 9:40am
आदरणीय सतविंदर भाई जी सुन्दर वासन्तिक गीत के लिए बधाई
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 1, 2017 at 8:44pm
सुन्दर गीत ...बधाई
Comment by Samar kabeer on February 1, 2017 at 6:07pm
जनाब सतविन्दर कुमार जी आदाब,बढ़िया गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on February 1, 2017 at 4:56pm
आदरणीय सतविन्द्र कुमारजी, बेहतरीन गीत की प्रस्तुति पर ढेरों बधाईयाँ ।

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