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हार में भी जीत-पहला प्रयास लघु कथा

अपने जीवन की पहली लघु कथा लिखने के बाद बार बार
उसे पढ़कर प्रकाशित करने की मनःस्थिति बना ही रहा था तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।" आओ -मित्र ! आओ "दरवाजा खोलते ही मैंने अपने मित्र आलोक से कहा।"आज कौन सी कविता ऑनलाइन प्रकाशित कर रहे हो"आलोक ने हमेशा की तरह पूंछा।"आज मैंने पहली लघु कथा लिखी है उसे ही प्रकाशित करने जा रहा हूँ"कंप्यूटर पर टाइप करते हुए मैंने जबाब दिया।" लेकिन-पहले प्रयास को सीधे प्रकाशित करते तुम्हे अजीब सा नहीं लग रहा है-"रचना के ठीक होने पर मिलने वाली संतोष जनक प्रतिक्रियाओ से हासिल सुखद अनुभव और परिमार्जित न होने पर मिलने वाली प्रतिक्रियाओ से होने वाले दुखद अनुभव को ध्यान में रखकर अपने संशय को व्यक्त करते हुए आलोक बोला।"रचना अच्छी हो या बुरी - उस पर होने वाली प्रतिक्रियाओं से सदा सुखद अहसास ही होता है,दुखद नहीं।आलोक के प्रश्न के प्रत्यत्तर नें मैंने कहा "मैं कुछ समझा नहीं -ऐसा-कैसे"आलोक ने आश्चर्य चकित होते हुए पुनः प्रश्न किया।"हां , आलोक इसकी बजह सिर्फ यह है की जिस मंच पर मैं रचना प्रकाशित करने जा रहा हूँ - उस मंच पर रचना को अच्छा देखकर मुस्कुराने और ख़राब महसूस कर मुंह बनाने जी जगह रचना क्यों अच्छी है और ख़राब है तो क्यों ख़राब है , बताने पर तरजीह दी जाती है और जानते हो यहाँ सिद्ध हस्त और मुझ जैसे नौसिखिये एक ही घाट पर पानी पीते है- रचना अच्छी क्यों है जानकर सोच को नए पंख और ख़राब क्यों है जानकार तमाम सीखने वालों को सबक और दिशा मिलती है" मैंने सुखद अनुभूति वाली अपनी बात को ज्यादा प्रभावशाली और स्पष्ट करते हुए कहा।"कहाँ खो गए आलोक" रचना को पोस्ट करते हुए मैंने कहा।"क्या वाकई ऐसा अद्भुत मंच है" होम पेज पर बड़े बड़े शब्दों में अंकित ओ बी ओ को बड़े कौतूहल से देखकर कुछ सोचते हुए आलोक ने कहा।"हां!हाँ वाकई ये हकीकत है" ऐसे मंच से जुड़े होंने के सुखद अहसास की अनुभूति करते हुए मैंने जवाब दिया।
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 14, 2017 at 10:23pm
आदरणीय समर सर पहली बार लघु कथा लिखने की कोशिश की है आपकी प्रतिक्रियाएं स्नेह और मार्गदर्शन सतत लिखने के लिए प्रेरित करते हैं इस बार लघु कथा के आयोजन में मैं भी कोशिश करूंगा तभी धीरे धीरे उस बिधा को सीख सकूंगा आपका आशीर्वाद मिलता रहे उस कामना के साथ सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 14, 2017 at 10:17pm
आदरणीय आरिफ जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार कर रहा हूँ सादर
Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 14, 2017 at 4:24pm

मधुर सत्य........

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2017 at 3:33pm
आज मेरी प्रतीक्षा समाप्त हुई। यकीन था कि ओबीओ साहित्यिक पत्रिका/मंच के गंभीर, नियमित सदस्य, पाठक व रचनाकारों के प्रोत्साहक टिप्पणीकर्ता की कोई बढ़िया रचना पढ़ने को मिलेगी। आपकी इस प्रस्तुति को पढ़कर लगा कि लघुकथा विधा, लघुकथाकारों व लघुकथा विधा-विशेषज्ञों/समीक्षकों के प्रति आप कितना स्नेह व लगाव रखते हैं! लघुकथा लेखन व्यक्तियों के मनोविज्ञान व उलझन-सुलझन को उभारती हुए लघुकथा कहने का यह अनुपम प्रयास विश्वास दिलाता है कि आगामी ओबीओ लघुकथा गोष्ठियों में हमारे साथ आप भी अपने बेहतरीन प्रयास के साथ अभ्यास में शामिल होंगे।

बेहतरीन संदेश वाहक प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारक़बाद मोहतरम जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी।
जहाँ तक रचना के शिल्प की बात है, तो इतना कहना चाहता हूँ कि हमें लघुकथा संदर्भ में छोटे-छोटे सारगर्भित संवादों में बड़ी बात कहने का भी अभ्यास करते रहना है। अन्य सभी टिप्पणियों से सहमत हूँ। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 14, 2017 at 3:29pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी मेरे लघुकथा के पहले प्रयास आपकी स्नेहिल उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर
Comment by Rahila on February 14, 2017 at 7:38am
बहुत बधाई इस सार्थक प्रयास के लिये आदरणीय सर जी!अपने तो ओ बी ओ के हर सदस्य के मन की बात कह दी। सादर
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 14, 2017 at 12:41am
डॉo आशुतोष मिश्रा , बधाई , सादर।
Comment by Samar kabeer on February 13, 2017 at 9:08pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,लघुकथा पर आपका प्रयास सराहनीय है,और ओबीओ के बारे में आपने जो लिखा है,वो तो बिल्कुल सच है,इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।
लघुकथा में आपकी परीक्षा उस समय होगी जब आप लघुकथा गोष्ठी में दिये गए शीर्षक पर प्रयास करेंगे करेंगे,उस समय आपके जौहर खुलेंगे ।
ये लघुकथा तो आपने अपने ओबीओ के प्रति अपने जज़्बात का इज़हार किया है,वैशे मुझे आपके क़लम की धार देख कर यही उम्मीद है कि आप आसानी से ये इम्तिहान पास कर लेंगे,ओबीओ ज़िंदाबाद ।
Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:08pm
आदरणीय आशुतोष जी आदाब, आपने अपनी लघुकथा में ओ.बी.ओ.मंच की बेबाकी,सच्चाई को रेखांकित करने का साहस दिखाया । बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 13, 2017 at 4:43pm
अरे वाह क्या बात है! भाई आशुतोष मिश्र जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। आपने हम जैसे की जुबान को अपनी लघुकथा के माध्यम से कह दी। और सच भी यही है। बधाई इस सोच को इस रूप में हम तक पहुचाने के लिए।

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