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ग़ज़ल (निगाहों से आँसू निकलते रहे )

ग़ज़ल
-------
(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल )

क़ियामत की वो चाल चलते रहे |
निगाहें मिलाकर बदलते रहे |

दिखा कर गया इक झलक क्या कोई
मुसलसल ही हम आँख मलते रहे |

यही तो है गम प्यार के नाम पर
हमें ज़िंदगी भर वो छलते रहे |

मिली हार उलफत के आगे उन्हें
जो ज़हरे तअस्सुब उगलते रहे |

तअस्सुब की आँधी है हैरां न यूँ
वफ़ा के दिए सारे जलते रहे |

असर होगा उनपर यही सोच कर
निगाहों से आँसू निकलते रहे |

था तस्दीक़ शाना किसी गैर का
जहाँ बैठ कर वो उछलते रहे |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 16, 2017 at 11:04pm
वाह आदरणीय खूब बहुतखुब
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 16, 2017 at 10:50pm
आदरणीय तस्दीक अहमद जी सादर नमन!उम्दा गजल कही है आपने,बहुत बहुत मुबारकबाद
Comment by Samar kabeer on March 16, 2017 at 4:07pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'तअस्सुब की आँधी है हैरां न यूँ'
इस मिसरे के आख़िर में'हैरां न यूँ'को "हैरान यूँ"होना चाहिये था,शायद टाइपिंग मिस्टेक है ?
Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 2:27pm

क़ियामत की वो चाल चलते रहे |
निगाहें मिलाकर बदलते रहे |

वाह आदरणीय तस्दीक साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल बनी है। दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

Comment by Ravi Shukla on March 16, 2017 at 11:17am

आदरणीय तसदीक साहब बढि़या गजल कही आपने दिली मुबारक बाद कुबूल करें ।

Comment by Mohammed Arif on March 16, 2017 at 8:23am
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल करें ।

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