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पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया
हस्ती शजर की बाकी है मुझको बता गया
माना हवाएँ तेज़ हैं मेरे खिलाफ़ भी
लेकिन जुनून लड़ने का इस दिल पे छा गया
खोने को पास कुछ भी नहीं था हयात में
किसकी तलाफ़ी हो अभी तक मेरा क्या गया
शायद ये दुनिया मेरे लिए थी नहीं कभी
फिर शिकवा क्यों करुँ कि खुदा फ़ैज़ उठा गया
ख़्वाबों को ज़िन्दा करके भी क्या होता, दोस्तो!
मेरा जो वक्त था वो तो कब का चला गया
Meaning:
तलाफ़ी – क्षतिपूर्ति, फ़ैज़ - अनुकम्पा
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जु भाई इस उम्दा गजल के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल करें हर शेर कमाल का है
हार्दिक बधाई शिज्जु "शकूर" जी ।बेहतरीन गज़ल।
ख़्वाबों को ज़िन्दा करके भी क्या होता, दोस्तो!
मेरा जो वक्त था वो तो कब का चला गया
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