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एक शब्द ....

एक शब्द टूट गया
एक शब्द रूठ गया
एक शब्द खो गया
एक शब्द सो गया
एक शब्द आस था
एक शब्द उदास था
एक शब्द देह था
एक शब्द अदेह था
एक शब्द में अगन थी
एक शब्द में लगन थी
एक शब्द जनम था
एक शब्द मरण था
एक शब्द प्यास था
एक शब्द मधुमास था
एक शब्द चन्दन था
एक शब्द क्रंदन था
एक शब्द मोह था
एक शब्द विछोह था


शब्दों की भीड़ थी
हर शब्द में पीर थी
नीर था शब्दों में
शब्द शब्द में
तहरीर थी
आदि का
जब अंत हुआ
तो
शब्द भाव
अनंत हुआ
शब्द
शब्द में मिल गया
और
अंत

परमानंद हुआ

सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Views: 564

Comment

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Comment by Sushil Sarna on March 23, 2017 at 1:58pm

आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब सृजन को अपने स्नेहिल शब्दों से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on March 23, 2017 at 1:58pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति को अपना आत्मीय स्नेह देने का हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 23, 2017 at 9:12am

आदरनीय सुशील भाई , खूब सूरत दार्शनिक कविता के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by narendrasinh chauhan on March 22, 2017 at 11:04am

लाजवाब 

Comment by Sushil Sarna on March 20, 2017 at 5:32pm

आदरणीय    Mohammed Ari जी  प्रस्तुति के मर्म को अपने सहमति देते लफ़्ज़ों से मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on March 20, 2017 at 5:31pm

आदरणीय     Tasdiq Ahmed Khan   जी  प्रस्तुति के मर्म को अपने सहमति देते लफ़्ज़ों से मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Mohammed Arif on March 19, 2017 at 10:46pm
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, शब्द को बहुत सुंदर तरीक़े से आपने परिभाषित किया है आपने । वैसे भी हमारे यहाँ कहा गया है कि "शब्दम् ब्रह्मम्"। हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 19, 2017 at 7:30pm

मुहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , शब्द की बहुत सुंदर ब्याख्या की है आपने रचना
में ,अच्छी प्रस्तुति मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ --

कृपया ध्यान दे...

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