For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निम्नांकित पद्यों में घनाक्षरी छंद है, ‘कवित्त’ और ‘मनहरण’ भी इसी छन्द के अन्य नाम हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती है और प्रत्येक पंक्ति में ३१, ३१ वर्ण होते हैं। क्रमशः ८, ८, ८, ७ पर यति और विराम का विधान है, परन्तु सिद्धहस्त कतिपय कवि प्रवाह की परिपक्वता के कारण यति-नियम की परवाह नहीं भी करते हैं। यह छन्द यों तो सभी रसों के लिए उपयुक्त है, परन्तु वीर और शृंगार रस का परिपाक उसमें पूर्णतया होता है। इसीलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास के चारों कालों में इसका बोलबाला रहा है। मैं इस छन्द को छन्दों का छत्रपति मानता हूँ।

घर में नहीं है चाहे चून एक चुटकी भी,

चाहता परन्तु थैली थाली में भी आज है।

    रहे ना रतन अब बरतन तक बिके,

    उपर से गिरी घोर गरीबी की गाज है।।

ख्याल खाने पीने का न ठर्रा ठाट से हैं पीते,

ठोकरे ठेंको पै खाते ठप्प काम काज है।

    गलत लतों में पड़ पतित जवान हुए,

    इनसे ही बनता बिगड़ता समाज है।।

 

चोरी जारी जुआ जुर्म ज्यादा तभी बढ़ते हैं,

दुनिया मे दौर जब चलता है दारू का ।

    अमीरों के भी जमीर जर जोरू औ जमीन ,

    बिक जाते जाम जब घलता है दारू का।।

देह दिल औ दिमाग होता है खराब,रोग

जीवनान्त के ही संग ढलता है दारू का।

    साथियों बचाओ आओ देर ना लगाओ अब,

    मानव को दानव निगलता है दारु का ।।

 

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on June 1, 2011 at 9:53am

समस्त साहित्य सुधापायी सारस्वतों का  "दारू का दानव " पद्यों के प्रति उदार हृदय से प्रोत्साहन पाकर मैं तो भूल सा ही गया कि मैं मातृभूमि से सात समन्दर दूर हूँ। भारत और यहाँ की घड़ी की सूइयों में दिनरात का अंतर होने से त्वरित टिप्पणी करना थोड़ी टेढ़ी खीर है,लेकिन फिर भी "तस्मै कस्मै न रोचते" विलम्ब से ही सही आप सभी मेरी हार्दिक शुभकामनाएं अंगीकार करें,श्री नेमीचंद जी से प्रार्थना है कि यदि अपनी टिप्पणियाँ आप देवनागरी में टंकित कर सकें तो मिश्री में धागे वाली बात नहीं होगी।घनाक्षरी छंद की पूरी विधि ही आपने संश्लिष्ट कर दी।जो कि अपने आप में अनूठी खोज है।विस्तारभयात प्रत्येक बन्धु का नामोल्लेख किये बिना ही मैं सभी पाठकों को प्रणाम करता हूँ।

सस्नेह संदीप कुमार त्यागी

Comment by Rajendra Swarnkar on May 31, 2011 at 9:55pm
आचार्य संदीप कुमार त्यागी जी
नमस्कार !


"विश्व तम्बाकू निषेध" दिवस के अवसर पर
आप द्वारा रचित मनहरण कवित्त पढ़ कर आनन्द आ गया ।

एक छंद उपासक होने के कारण वैसे भी मुझे ऐसी रचनाएं आकर्षित करती हैं …
और जो रचना समाज के हित के लिए हो , उसका महत्व तो और भी बढ़ जाता है निस्संदेह !

बहुत बधाई है !

राजेन्द्र स्वर्णकार
Comment by Anjana Dayal de Prewitt on May 31, 2011 at 6:38pm

चोरी जारी जुआ जुर्म ज्यादा तभी बढ़ते हैं,

दुनिया मे दौर जब चलता है दारू का ।

    अमीरों के भी जमीर जर जोरू औ जमीन ,

    बिक जाते जाम जब घलता है दारू का।।

sarthak rachna... aam zindagi ke bahot hi kareeb... dhanyawaad!
Comment by nemichandpuniyachandan on May 31, 2011 at 11:31am
Aadi beech laghu doy,antim me guru hoy| ye sagan roop soy,isvjdh janiye|| dev to pavan jaan,fal to bharman maan| jaati to ari samaan,ashubh bakhaniye|| neel varn saa prakash,vaahan saarnag paas| shaak deevp khaas,isvidh thaaniye|| swaroopanand swchchhnd,asth ganon ke parband| jijnasu lahe anand,pingal pramaniye||
Comment by nemichandpuniyachandan on May 31, 2011 at 11:27am
Aadi beech laghu doy,antim me guru hoy| ye sagan roop soy,isvjdh janiye|| dev to pavan jaan,fal to bharman maan| jaati to ari samaan,ashubh bakhaniye|| neel varn saa prakash,vaahan saarnag paas| shaak deevp khaas,isvidh thaaniye|| swaroopanand swchchhnd,asth ganon ke parband| jijnasu lahe anand,pingal pramaniye||
Comment by nemichandpuniyachandan on May 31, 2011 at 11:09am
Sundar abhivyaktee ke liye badhai.
Comment by Deepak Sharma Kuluvi on May 31, 2011 at 10:47am

VERY RIGHT SIR.....BUT..........

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2011 at 10:06am
आचार्य संदीप कुमार त्यागी जी - बहुत ही सुन्दर छंद कहे हैं आपने, पढ़ कर आनंद आ गया ! मैं अभी भी इनको पढ़ पढ़ कर गुनगुना रहा हूँ ! इसके इलावा घनाक्षरी छंद से सम्बंधित जो जानकार आपने साझा की है, मैं उसके लिए भी आपको साधुवाद देता हूँ ! 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 31, 2011 at 10:03am

आचार्य संदीप त्यागी जी, आज "विश्व तम्बाकू निषेध" दिवस पर आपकी यह काव्य कृत बहुत ही सुंदर और संदेशपरक है, कल प्रधान संपादक जी की घनाक्षरी पढ़ने का सौभाग्य हुआ और आज रचना विधान के साथ आप की घनाक्षरी | बहुत खूब , निश्चित ही युवा साहित्यकार छंद की इस विधा की तरफ आकर्षित होंगे |

बहुत बहुत बधाई आचार्य जी |  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service