निम्नांकित पद्यों में घनाक्षरी छंद है, ‘कवित्त’ और ‘मनहरण’ भी इसी छन्द के अन्य नाम हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती है और प्रत्येक पंक्ति में ३१, ३१ वर्ण होते हैं। क्रमशः ८, ८, ८, ७ पर यति और विराम का विधान है, परन्तु सिद्धहस्त कतिपय कवि प्रवाह की परिपक्वता के कारण यति-नियम की परवाह नहीं भी करते हैं। यह छन्द यों तो सभी रसों के लिए उपयुक्त है, परन्तु वीर और शृंगार रस का परिपाक उसमें पूर्णतया होता है। इसीलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास के चारों कालों में इसका बोलबाला रहा है। मैं इस छन्द को छन्दों का छत्रपति मानता हूँ।
घर में नहीं है चाहे चून एक चुटकी भी,
चाहता परन्तु थैली थाली में भी आज है।
रहे ना रतन अब बरतन तक बिके,
उपर से गिरी घोर गरीबी की गाज है।।
ख्याल खाने पीने का न ठर्रा ठाट से हैं पीते,
ठोकरे ठेंको पै खाते ठप्प काम काज है।
गलत लतों में पड़ पतित जवान हुए,
इनसे ही बनता बिगड़ता समाज है।।
चोरी जारी जुआ जुर्म ज्यादा तभी बढ़ते हैं,
दुनिया मे दौर जब चलता है दारू का ।
अमीरों के भी जमीर जर जोरू औ जमीन ,
बिक जाते जाम जब घलता है दारू का।।
देह दिल औ दिमाग होता है खराब,रोग
जीवनान्त के ही संग ढलता है दारू का।
साथियों बचाओ आओ देर ना लगाओ अब,
मानव को दानव निगलता है दारु का ।।
Comment
समस्त साहित्य सुधापायी सारस्वतों का "दारू का दानव " पद्यों के प्रति उदार हृदय से प्रोत्साहन पाकर मैं तो भूल सा ही गया कि मैं मातृभूमि से सात समन्दर दूर हूँ। भारत और यहाँ की घड़ी की सूइयों में दिनरात का अंतर होने से त्वरित टिप्पणी करना थोड़ी टेढ़ी खीर है,लेकिन फिर भी "तस्मै कस्मै न रोचते" विलम्ब से ही सही आप सभी मेरी हार्दिक शुभकामनाएं अंगीकार करें,श्री नेमीचंद जी से प्रार्थना है कि यदि अपनी टिप्पणियाँ आप देवनागरी में टंकित कर सकें तो मिश्री में धागे वाली बात नहीं होगी।घनाक्षरी छंद की पूरी विधि ही आपने संश्लिष्ट कर दी।जो कि अपने आप में अनूठी खोज है।विस्तारभयात प्रत्येक बन्धु का नामोल्लेख किये बिना ही मैं सभी पाठकों को प्रणाम करता हूँ।
सस्नेह संदीप कुमार त्यागी
चोरी जारी जुआ जुर्म ज्यादा तभी बढ़ते हैं,
दुनिया मे दौर जब चलता है दारू का ।
अमीरों के भी जमीर जर जोरू औ जमीन ,
बिक जाते जाम जब घलता है दारू का।।
sarthak rachna... aam zindagi ke bahot hi kareeb... dhanyawaad!VERY RIGHT SIR.....BUT..........
आचार्य संदीप त्यागी जी, आज "विश्व तम्बाकू निषेध" दिवस पर आपकी यह काव्य कृत बहुत ही सुंदर और संदेशपरक है, कल प्रधान संपादक जी की घनाक्षरी पढ़ने का सौभाग्य हुआ और आज रचना विधान के साथ आप की घनाक्षरी | बहुत खूब , निश्चित ही युवा साहित्यकार छंद की इस विधा की तरफ आकर्षित होंगे |
बहुत बहुत बधाई आचार्य जी |
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