फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)
जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये
यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये
माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ
जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये
वक़्त इसके लिये कुछ निकालो ज़रा
ये गुज़ारिश करूँ ओबीओ के लिये
दूसरा काम कोई नहीं है मुझे
जब रुकूँ ,जब चलूँ ओबीओ के लिये
आप आऐं हमारे परिवार में
जो मिले ये कहूँ ओबीओ के लिये
अब ग़ज़ल या कथा ही नहीं दोस्तो
छन्द भी मैं लिखूँ ओबीओ के लिये
ज़िक्र इसका रहे हर ज़बाँ पर "समर"
काम ऐसे करूँ ओबीओ के लिये
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
वाह वाह आदरणीय समर साहब क्या कहने एक बार फिर कमाल कर दिया ( पहले भी ओ बी ओ केा आधार बना कर एक गजल कही थी आपने जिसका पहला हर्फ ओ बी ओ से शुरू होता था ) आपने बहुत ही अच्छे भावों के साथ आपने ओ बी ओ के प्रति अपने समपर्ण को व्यक्त किया है दिली दाद ओ तहसीन कुबूल करें । ओ बी ओ जिंदाबाद
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