समीक्षार्थ
मनहरण घनाक्षरी ....(एक प्रयास)
***
आशा का प्रकाश कर
बांस को तराश कर
बांसुरी के सुर संग
गीत बन जाइए
.
हौसले पकड़ कर
आँधियाँ पछाड़ कर
बहती नदी सी इक
रीत बन जाइए
.
मछली पे आँख रहे
धरती पे पाँव रहे
आसमान छू के जरा
जीत बन जाइए
.
बहुत जीया है इस
दुनिया की सोच कर
अब अपने भी जरा
मीत बन जाइए
.
"मौलिक व अप्रकाशित"
((चार पदों के इस वर्णिक छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्णों की संख्या ३१ होती है.प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या क्रमशः ८, ८, ८, ७ की यति के अनुसार . तथा, पदान्त लघु-गुरु से हो. ))
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर
आदरणीय Ashok Kumar Raktale ji, मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । सादर।
आदरणीय Samar Kabeer ji , होंसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभार। सादर।
आदरणीय narendrasinh chauhan ji , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर
आदरणीय Ashok Kumar Raktale ,नमस्कार , प्रयास को समय देने व् मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार । बहुत सुंदर सुझाव बताये है आपने,.. सुझाव अनुसार एडिट करती हूँ ...एक निवेदन है ..प्रथम चरण के लिए "मन न निराश कर" की जगह "आशा का प्रकाश कर " या "वेदना का नाश कर" सूझ रहा है.... यदि अब सही हो तो एडिट किया जाए ?
...सादर।
खूब सुन्दर
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ,नमस्कार , प्रयास पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर
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