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आदरणीय समर साहिब, आदाब । आपकी ग़ज़ल पढ़कर पता चलता है कि ग़ज़ल क्या होती है। तकनीकी तौर पर तो कुछ कह ही नहीं सकता पर भाव के स्तर पर एक-एक शे'र के पीछे एक पूरी की पूरी कहानी महसूस कर पा रहा हूं। राहत इंदौरी सॉहिब का एक शे'र याद आ गया-
हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू
सब समझते है ये धन्धा बड़े आराम का है ।
कितनी प्रौढ़ता झलकती है अापकी ग़ज़ल में । अक्सर आपकी ग़ज़लें पढकर ऐसा लगता है कि जैसे महात्मा बुद्ध एक बहुत खुले मैदान में बरगद के नीचे बैठे अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे हों । आपकी ग़ज़लों में आपका विशाल अनुभव झलकता है। मन अंदर तक त़ृप्त हो जाता हूं आपकी ग़ज़ल पढ़कर । भगवान आपकी कलम को बल प्रदान करें । सादर शुभकामनाएं
वो मेरी तेग़ से मरता तो क्या मज़ा आता
उसी के तीर से उसका शिकार करना था
वाह आदरणीय समर कबीर साहिब हर शेर सीधे दिल में उत्तर गया। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।
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