For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हो गया वह बे मुरव्वत देखते ही देखते

ग़ज़ल
फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फाइलुन

मिल गई उल्फ़त की जन्नत देखते ही देखते।
हो गई उन से मुहब्बत देखते ही देखते।

आ गया है कौन आख़िर हुस्न के बाज़ार में
हो गई बरपा कियामत देखते ही देखते ।

हो गया शायद वफाओं का सितमगर पर असर
ख़त्म करदी उसने नफ़रत देखते ही देखते।

कारवां वालों को हासिल ही न था जिसको यक़ी
उसने पा ली है क़यादत देखते ही देखते।

ये है खारों की हिमायत का नतीजा बागबां
हो गई हर सू बग़ावत देखते ही देखते।

ज़ुल्म का प्याला लबालब हो चुका था दोस्तों
यूँ नहीं बदली हुकूमत देखते ही देखते ।

ग़म यही है सौंप दी तस्दीक़ जिसको ज़िन्दगी
हो गया वह बे मुरव्वत देखते ही देखते।

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 2, 2017 at 2:34pm
मुहतरम नरेंद्र सिंह साहिब, हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 2, 2017 at 2:32pm
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का तहे दिल से शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 2, 2017 at 2:30pm
मुहतरम जनाब नीलेश साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया---
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 2, 2017 at 2:28pm
मुहतरम जनन आरिफ साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by narendrasinh chauhan on May 2, 2017 at 2:03pm

लाजवाब, बेहतरीन गजल। ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2017 at 12:36pm

क्या बात है , आदरनीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को .. मुबारकबाद कुबूल कीजिये ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2017 at 8:22am

वाह वाह आ. तस्दीक़ साहब ...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है...
बधाई 

Comment by Mohammed Arif on May 2, 2017 at 8:14am
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब, बहुत ही शानदार ग़ज़ल । कुछ शे'र तो सामयिक बन पड़े हैं । शे'र दर शे'र दादा के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service