For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ललक दिल को रिझाने की -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ (ग़ज़ल)

ग़ज़ल


1222 1222 1222 1222

ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी
किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।

सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को
न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।

हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए
मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।

हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो
किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।

नहीं उसको शिकायत कुछ सुना है यार किस्मत से
गरीबी  से  भी  वो  शायद  सुकूनी  हो  गई  होगी।5।

बहाए उसने आँसू हों कि पोंछा हो पसीना यूँ
मगर तासीर दामन की तो नूनी हो गई होगी।6।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 840

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2017 at 12:13pm

आ. भाई आषुतोश जी ,  गजल पर उपस्थिति  लिए हार्दिक आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2017 at 12:11pm

आ. भाई बसंत जी ,  गजल की  प्रशंसा के लिए हार्दिक  आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2017 at 12:10pm

आ. भाई बृजेश जी ,  गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 8:11pm

आदरनीय लक्ष्मण भाई , खूबसूरत गज़ल के लिये दिल से बधाइयाँ प्रेषित हैं , स्वीकार करें । मै भी आदरणीय अनुराग भाई की बात से सहमत हूँ ... नूनी -- पहलू ए जम की की स्थिति बना रही है ... ये सही है ।

Comment by Ravi Shukla on May 8, 2017 at 9:29am

आदरणीय नीलेश जी हमारा अनुमान है कि नून (नमक) से नूनी ( नमकीन) बना कर इस्‍तेमाल किया गया है कितना सही है ये तो आदरणीय लक्ष्‍मण जी ही बता सकते है पर क्षमा सहित निवेदन है कि इस काफिये में श्‍ेारीयत का अभाव लगा । सादर

Comment by Ravi Shukla on May 8, 2017 at 9:28am

आदरणीय लक्ष्मण जी बढि़या गजल । शे'र शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए

सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को
न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।  तस्‍वीर का दूसरा रुख भी आपने दिखा दिया । वाह

Comment by Mohammed Arif on May 8, 2017 at 8:33am
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब, लाजवाब ग़ज़ल । शे'र शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन कह चुके हैं ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2017 at 8:12am

आ. लक्ष्मण जी,

ग़ज़ल के  लिये बधाई ..
नूनी    का अर्थ मैं भी जानना चाहूँगा 
सादर 

Comment by Samar kabeer on May 7, 2017 at 10:12pm
जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी आदाब,बहुत दिन बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ने का मौक़ा मिला ।
उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आख़री शैर में 'नूनी'शब्द का अर्थ क्या है ?
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2017 at 9:49pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी है आदरणीय भाई लक्ष्मण जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
9 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service