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ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी
किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।
सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को
न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।
हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए
मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।
हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो
किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।
नहीं उसको शिकायत कुछ सुना है यार किस्मत से
गरीबी से भी वो शायद सुकूनी हो गई होगी।5।
बहाए उसने आँसू हों कि पोंछा हो पसीना यूँ
मगर तासीर दामन की तो नूनी हो गई होगी।6।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ. भाई आषुतोश जी , गजल पर उपस्थिति लिए हार्दिक आभार
आ. भाई बसंत जी , गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार
आ. भाई बृजेश जी , गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरनीय लक्ष्मण भाई , खूबसूरत गज़ल के लिये दिल से बधाइयाँ प्रेषित हैं , स्वीकार करें । मै भी आदरणीय अनुराग भाई की बात से सहमत हूँ ... नूनी -- पहलू ए जम की की स्थिति बना रही है ... ये सही है ।
आदरणीय नीलेश जी हमारा अनुमान है कि नून (नमक) से नूनी ( नमकीन) बना कर इस्तेमाल किया गया है कितना सही है ये तो आदरणीय लक्ष्मण जी ही बता सकते है पर क्षमा सहित निवेदन है कि इस काफिये में श्ेारीयत का अभाव लगा । सादर
आदरणीय लक्ष्मण जी बढि़या गजल । शे'र शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए
सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को
न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी। तस्वीर का दूसरा रुख भी आपने दिखा दिया । वाह
आ. लक्ष्मण जी,
ग़ज़ल के लिये बधाई ..
नूनी का अर्थ मैं भी जानना चाहूँगा
सादर
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