( दूसरे शेर के ऐब ए तनाफुर को कृपया स्वीकार करें )
2122 1212 22/112
ज़ह’नियत यूँ न बरहना करिये
अपने जामे में ही रहा करिये
आब ठंडक ही दे हमें हरदम
आग, गर्मी ही दे दुआ करिये
बेवफा हो गये हैं जो साबित
उनसे क्या खा के अब वफ़ा करिये
जुगनुओं की चमक चुरायी है
शम्स ख़ुद को न अब कहा करिये
सिर्फ बीमार कह के चुप न रहें
इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा करिये
आइना कह जिसे दिखाये , वो
आइना था नहीं, तो क्या करिये
हाँ ,सदा ए ग़ैब ही उसे समझें
चुप ! कहा है तो चुप रहा करिये
आज धुँधलाते आइने ने कहा
क्यों किसी दोस्त को ज़ुदा करिये
हाथ में फिर चराग है मेरे
हो सके, तेज़ फिर हवा करिये
झड़ न जायें.., वो ज़र्द पत्ते हैं
जब छुयें, प्यार से छुवा करिये
ता कि, सारा जहाँ बुरा न लगे
खूबियाँ मेरी गिन लिया करिये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.बहुत बधाईयाँ
बहुत खूब, अच्छी गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
आ. गिरिराज जी,
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई ..
.
अगर करिये को कीजै किया जा सके तो मुलायमियत बढ़ जायेगी
सादर
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