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आदरनीय समर भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने .. कहन में हम जैसों के सीखने के लायक बहुत कुछ है । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
पर हाँ ... मतले के विचारों से मै सहमत नहीं हूँ ... लेकिन विचार आपकी स्वतंत्रता है ... कहन के लिये बधाइयाँ ।
एक शेर कहने की कोशिश की है .. ज़दीद ..और रवायती गज़ल पर ..
हरेक चीज़ नयी हो गयी है ख़ुद की , तब
गज़ल रवायतों की बेड़ियाँ ही क्यूँ पहने ?
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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