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कोई हसरत उफ़ान तक आई

2122 1212 22

बात दिल की जुबान तक आई ।
कोई हसरत उफ़ान तक आई ।।

मैं नहीं बन्द कर रहा कोटा ।
यह बहस संविधान तक आई ।।

हौसले फिर जले सवर्णो के ।
रोशनी आसमान तक आई ।।

फायदा क्या मिला हुकूमत से ।
बस नसीहत लगान तक आयी ।।

मिटती हस्ती को देखता हूँ मैं ।
आंख जब भी रुझान तक आई ।।

यह नदी इंतकाम की खातिर ।
आज हद के निशान तक आई ।।

हक जो मांगा है,औरतों ने कभी ।
रोज चर्चा कुरान तक आई ।।

बूंद भर ही सही मगर स्याही ।
तेरे झूठे गुमान तक आई ।।

तीर बेशक नही चला लेकिन ।
एक उगली कमान तक आई ।।

फंस गई जाल में वही चिड़िया ।
जो थी लम्बी उड़ान तक आई ।।

जुर्म पकड़ा गया है फिर उसका ।
खोज ऊंचे मचान तक आई ।।

खूब बारूद का सिला लेकर ।
कोई आफ़त मकान तक आई ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 739

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Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 4:10pm

हक जो मांगा है,औरतों ने कभी ।
रोज चर्चा कुरान तक आई ।।...बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय  Naveen Mani Tripathi जी ! हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Samar kabeer on July 16, 2017 at 3:42pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
पांचवें शैर में क़ाफ़िया दोष है,'रुझान'ग़लत शब्द है,सही शब्द है "रुजहान'।
इसी तरह सातवें शैर में भी क़ाफ़िया दोष है,कुरान'ग़लत शब्द है,सही शब्द है "क़ुरआन"।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2017 at 2:21pm
बहुत सुंदर ...
Comment by Gurpreet Singh jammu on July 15, 2017 at 9:37pm
बहुत खूबसूरत मतला और बाकी अशआर भी अच्छी लगे आदरणीय नवीन जी..बहुत खूब
Comment by Mohammed Arif on July 15, 2017 at 6:43pm
खूब बारूद का सिला लेकर ।
कोई आफ़त मकान तक आई ।। वाह!वाह!! बहुत ही सामयिक शे'र ।
हर शे'र लाजवाब । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल कीजिए आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी ।
Comment by narendrasinh chauhan on July 15, 2017 at 4:18pm

खूब सुन्दर रचना 

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