गाँव वालों के बीच इन दिनों एक ही चर्चा चल रही थी और वो थी सुखिया के बेटे का आतंकवादी बन जाना | सुखिया एक सीधा सादा कुम्हार था पर उसके हाथ के बने घड़े सुन्दर और पक्के होते थे | आस पास के गाँव वाले भी उसके पास घड़े खरीदने आते थे |
लोगों को जब उनके बेटे के बारे में पता चला तो वे सब सकते में आ गए ।
किसीने कहा , " घोर कलजुग है भैया , किसीका भरोसा नहीं । "
कोई बोला ," इसमें तो मुझे उस सुखिया कुम्हार की ही गलती दिखे है , माटी के घड़े तो बना दिए पर खुद के बेटे को ......छी छी... लानत है ऐसे बाप पर जो अपने बच्चों की परवरिश नहीं कर सका । उसकी जगह मैं होता तो अपने बेटे को खुद ही मार देता । "
सुखिया सब की बातों को सुन रहा था , उसकी आँखों से उसकी लाचारी साफ़ नज़र आ रही थी ।
इस चर्चा में गाँव के मास्टरजी भी थे । उन्होंने कहा , भाइयों आपकी बातों से मैं सहमत हूँ पर मिटटी के घड़ों की यह भी सच्चाई है कि मिटटी से आकार तो कोई भी दे सकता है पर जब तक घड़ा आग में तपे नहीं तब तक वह कच्चा ही रह है जाता है और पकना तो उसीको पड़ता है । उस तपिश को सहन कर ले तो बाहर आकर किसीके घर में काम आ ही जायेगा वरना उसका टूट कर बिखरना तो तय है । "
"मास्टर जी आप बात तो सही कह रहे हो , तपना तो खुद को ही पड़ता है , कुछ ऐसा ही हुआ है सुखिया के बेटे के साथ , और वह टूट गया । काश रुक जाता कुछ देर ।"
सुखिया अपने चाक पर बैठ गया , उसके पास उसका छोटा बेटा था जो उसका हाथ बंटा रहा था ।
सुखिया ने उससे कहा , "सही से पकाइयों वरना घड़ा टूट जायेगा | तू ने अभी तक भट्टी पे काम नहीं किया है | "
बेटे ने पिता के आशय को समझते हुए जवाब दिया ," बाबा मैंने भट्टी पे काम करते हुए आपको देखा है आप न घबराये, घड़े सही से ही पकाऊंगा "
सुखिया के सामने अब उसके बनाये घड़े पक रहे थे ।
मौलिक एवं अप्रकाशित |
Comment
कल्पनाजी ,लघुकथा बहुत ही बढ़िया ,मानकों पर खरी उतरती हुई ,बधाई |
बहुत बढ़ीया लघुकथा आदरणीय कल्पना जी । कथानक व ट्रीटमेंट दोनों जर्बदस्त । विशेषकर अंतिम पंक्ितयां / बाबा मैंने भट्टी पे काम करते हुए आपको देखा है आप न घबराये, घड़े सही से ही पकाऊंगा / बहुत ही गहन संदेश प्रेषित कर रही हैं । सुखिया के सामने अब उसके बनाये घड़े पक रहे थे । लघुकथा के अंत में आई यह पंक्ित लघुकथा का सार है । शीर्षक चयन भी बेहतरीन । सादर शुभकामनाएं ।
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