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ग़ज़ल...नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे-बृजेश कुमार 'ब्रज'

22 22 22 22
फिरते हैं बन वन बंजारे
नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे

जब भी होंट खुले तो पाया
नाम तुम्हारा साँझ सकारे

जाने वाले आ भी जा अब
तुझको मेरी आह पुकारे

दर्द जुदाई आहें आँसू
जीवन है या कोइ सजा रे

कितने अरसे बाद मिले हो
ओ मेघा मनमीत सखा रे
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2017 at 10:55pm
आदरणीय शुक्ला जी आपका बहुत बहुत आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2017 at 10:54pm
उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन आदरणीय सुरेंद्र जी..सादर
Comment by Ravi Shukla on August 6, 2017 at 1:01pm

आदरणीय बृजेश जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने दाद कुबूल करें आखरी शेर खासतौर पर पसंद आया

Comment by नाथ सोनांचली on August 4, 2017 at 4:49am
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन, बहुत खूब
कितने अरसे बाद मिले हो
ओ मेघा मनमीत सखा रे

बढ़िया लगा, बधाई आद0
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 2, 2017 at 8:50am
आदरणीय लक्षमण धामी जी आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार..जी कुछ सुधार का प्रयास करता हूँ..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 2, 2017 at 8:49am
आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी हौसलाफजाई के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद...सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 2, 2017 at 8:48am
बहुत बहुत आभार आदरणीय शर्मा जी..सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2017 at 11:36am

आ. भाई ब्रजेश् जी सुंदर गजल हूई है। हार्दिक बधाई ।  आ. भाई समर जी की बात भी उचित लग रही है। मुझे भी कुछ कुछ समझ नहीं आया ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on August 1, 2017 at 10:38am

दर्द जुदाई आहें आँसू
जीवन है या कोइ सजा रे
वाह आदरनीय बृजेश जी,, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 10:10am

वाह आनंद आ गया आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी , वाह 

दर्द जुदाई आहें आँसू
जीवन है या कोइ सजा रे ..क्या बात है 

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