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आदरनीय मनन भाई , अच्छी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
अगर आपने - 2122 2122 212 बह्र मे गज़ल कही है तो --
मतले का सानी बेबह्र हो रहा है -- इसे
मौसमों का रुख भी है बदला बहुत। रुख - की मात्रा 2 होती है आपने 21 ले ली है मात्रा
वक्त गुजरा याद अब आता बहुत - को --- वक्त गुजरा याद है आता बहुत ( है , के बिना अर्थ अधूरा है )
बाक़ी बातें आ, रवि भाई कह ही चुके हैं ... ख्याल कीजियेगा ।
आदरणीय मनन जी, खूबसूरत गजल कही है, आदरणीय रवि शुक्ल जी की टिप्पणी से मैं भी इत्तफाक रखता हूँ.अंतिम शेर वाकई समझ में नहीं आया.
आदरणीय मनन जी गजल के लिये मुबारक बाद पेश करते है हालांकि अरकान आप ने नहीं लिखे पर प्रवाह के अनुसार इसके अरकान
2122 2122 212 समझ आए। मतले का सानी इस हिसाब से बहर में नहीं है देखियेगा
फिर चिरागों ने दबोची रोशनी को इस मिसरे में चिरागो ने दबोचा शायद सही तरकीब हो
हो गये वे आज अनजाना बहुत।7 इस मिसरे में हो गये आज वे अनजाने होना चाहिये जिससे काफिया सही नहीं रह जाएगा
अाखिरी शेर के अर्थ तक नहीं पहुँच पाए
बहर हाल 2सरा और 4 था श्ोर अच्छा लगा । सादर
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