For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - किसी साधू के गहरे ध्यान से हम

२१२२, १२१२, २२ (११२) +१ 
.
किसी साधू के गहरे ध्यान से हम
बैठे रहते है इत्मिनान से हम.
.
तुम हो इक टूटती हुई दीवार
एक ढहते हुए मकान से हम.
.
गर ख़ुदा को वहाँ नहीं पाया,   
लौट आयेंगे आसमान से हम.   
.
बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें
ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम.
.
बुतकदे में जलाने को दीपक
जाग जाते हैं इक अज़ान से हम.   
.
एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत 
साथ में थे बड़े जवान से हम. 
.
वस्ल का पल, ये जिस्म और वो “नूर”
हट गए अपने दरमियान से हम. 
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 863

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:23am

शुक्रिया आ. अफरोज़ जी 

व्यस्तता के चलते देर से आने की मुआफ़ी चाहूँगा 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:22am

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

व्यस्तता के चलते देर से आने की मुआफ़ी चाहूँगा 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:22am

शुक्रिया आ. सलीम रज़ा साहब 

व्यस्तता के चलते देर से आने की मुआफ़ी चाहूँगा 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:22am

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब.. व्यस्तता के चलते देर से आने की मुआफ़ी चाहूँगा 
सादर 

Comment by Ajay Tiwari on October 18, 2017 at 6:24am

आदरणीय निलेश जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.

सादर 

Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 8:47pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के सानी मिसरे में 'इत्मिनान'ग़लत शब्द है,सही शब्द है "इत्मीनान",देखियेगा ।
'बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें
ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम'
सानी मिसरे के हिसाब से ऊला मिसरा स्पष्ट नहीं क्योंकि ऊँचा सुनने के साथ ऊँचा या ज़ोर से बोलना उचित है,साफ़ साफ़ नहीं,ग़ौर कीजियेगा ।
'एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत
साथ में थे बड़े जवान से हम'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'एल्बम'की जगह 'तस्वीर'बहुत मुनासिब शब्द है,लेकिन शायद इसका तर्क आप ये दें कि पूरी एल्बम ही माज़ी की तस्वीरों की थी,ख़ैर ऊला मिसरे में 'थी'को "थीं"कर लें,और सानी मिसरा यूँ ज़ियादा बहतर होता:-
'साथ में हैं खड़े जवान से हम'
मुझे याद आ रहा है कि यही भाव आपकी किसी पुरानी ग़ज़ल में भी है ?
Comment by दिनेश कुमार on October 16, 2017 at 3:50pm
आ. निलेश सर जी। बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है। वह वाह
सभी शेर उम्दा लगे। दिली दाद। सर,... ऐक से बढ़कर एक
Comment by Afroz 'sahr' on October 16, 2017 at 3:05pm
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत सारी मुबारकबाद आदरणीय निलेश जी सादर,,,
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 16, 2017 at 2:06pm
आदरणीय नीलेश भाई जी इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई
बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें
ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम.।।।।साफ़ साफ़। और ऊंचा थोडा दुबिधा में हूँ साफ़ साफ़ बात भी धीमे धीमे हो सकती है।।मेरी समझ में कुछ फर्क है अपनी भ्रान्ति के निवारण के लिए जानना चाहता हूँ
Comment by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 1:44pm
किसी साधू के गहरे ध्यान से हम
बैठे रहते है इत्मिनान से हम.
एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत
साथ में थे बड़े जवान से हम.
वाह...निलेश जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद.
.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
14 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service