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ख़त हमारे अगर जलाता है ; ग़ज़ल नूर की

२१२२/ १२१२/ २२ (११२)
ख़त हमारे अगर जलाता है
राख दुनिया को क्यूँ दिखाता है.
.
हम को उम्मीद है तो ग़ैरों से,
कौन अपनों के काम आता है?
.
सुन रखी होगी आग जंगल की
क्यूँ शरर को हवा दिखाता है.
.
शम्स मुझ सा शराबी है शायद 
शाम ढलते ही डूब जाता है.
.
ज़र्द चेहरा है बाल बिखरे हैं
इस तरह कौन दिल लगाता है.
.
देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा
ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.
.
इस पे चलता है रब्त का धंधा
कौन क्या है औ क्या कमाता है.
.
“नूर” जुगनू सही मगर फिर भी
तीरगी को तो मुँह चिढ़ाता है.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Ajay Tiwari on October 31, 2017 at 12:12am

आदरणीय निलेश जी,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

 

देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा 
ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.
.
इस पे चलता है रब्त का धंधा
कौन क्या है औ क्या कमाता है.

विशेषत: ये दोनों शेर बहुत अच्छे लगे.

सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2017 at 11:22am
बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय नीलेश जी..सदर
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 26, 2017 at 10:03pm
आदरणीय आपकी रचना अनमोल हैं, बहुत मीठे बोल हैं, मन प्रसन्न हो गया बधाई हो
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 6:05pm
आदरणीय भाई नीलेश जी कमल के ग़ज़ल है ग़ज़लें तो बहुत पढ़ने को मिलती हैं पर ऐसी शानदार ग़ज़ल अक्सर नहीं मिलती कमाल की इस ग़ज़ल के लिये अनंत शुभकामनाये सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 26, 2017 at 3:32pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 26, 2017 at 3:21pm

शुक्रिया आ. बासुदेव जी 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 26, 2017 at 3:14pm
जनाब नीलेश साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। शेर 6 सानी मिसरे की बह्र चेक कर लीजिए ।
(ख़्वाहम ख्वाह सर खपाता है )
( 2 1 1 2 1 2 122 2)--सादर
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 26, 2017 at 12:29pm
आ0 निलेशजी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई।
शम्स मुझ सा शराबी है शायद
शाम ढलते ही डूब जाता है. बहुत खूब। सुंदर कल्पना
.
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 3:47pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 3:46pm

शुक्रिया आ. समर सर 

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