Comment
आदरणीय सुरेन्द्र जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.
जहाँ तक मौलिकता की बात है,शेर में एक शब्द का परिवर्तन भी पूरे शेर को बदल कर रख देता है. तरही में तो सिर्फ एक मिसरा किसी और शायर का होता है. सौदा और मीर के कई ऐसे शेर हैं जिन में सिर्फ कुछ शब्दों का फर्क है लेकिन ये देखने कि चीज है कि उन कुछ शब्दों से ही कितना फर्क पड़ जाता है.
सादर
आदरणीय समर साहब, आपकी नम्रता का तो मैं कायल हूँ ही, आपके उन सुझावों का भी साक्षी हूँ, जहाँ सीधे, बेलाग शब्दों में आप चेताते रहते हैं, कि अनावश्यक संबोधनों से बचा जाय. लेकिन यह सीखने वालों का भावातिरेक ही हुआ करता है कि ’कुछ समझ जाने’ का उत्साह उन्हें बताने वालोंके प्रति आदर-भाव से भर देता है.
इसी उत्साह में सदस्य श्रद्धा-वंदन करने लगते हैं. यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है. लेकिन इसी भाव-भावना के कारण, इतिहास ग़वाह है, कई विधाएँ विलुप्त हो गयीं. उस्ताद या गुरु लोग सुपात्र ढूँढते ही रह जाते हैं..
होता ये है कि सभी कुछ न कुछ जानते हैं. और सभी से सभी कुछ न कुछ सीख सकते हैं.
मेरी बातों को समर्थन देने केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय
आदरणीय विद्वजजन और निष्णात ग़ज़लगो आदाब,
सुबह से अब तक हुई बहस के संदर्भ में अंतिम वक्तव्य के रूप में कुछ कहना चाहता हूँ :-
(1) मैं ओबीओ का अतीव सक्रिय सदस्य हूँ और विभिन्न क़लमकर्मियों को निष्पक्ष भाव से अपनी टिप्पणियों से पोषित करने का प्रयास करता हूँ ।
(2) आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी की ग़ज़ल पर सुबह-सुबह जो मैंने टिप्पणी की वह सिर्फ मौलिकता की हिमायत करते हुए की थी । प्रचलित रिवायत को तोड़ने के लिए नहीं । चाहता हूँ रिवायत बरक़रार रहे मगर मौलिकता का भी पुट हो ।
(3) मैंने हमेशा ओबीओ के मंच अति सक्रियता के साथ संयत भाषा का प्रयोग किया है । उजड्ड या उच्छृंखलता मेरा कतई स्वभाव नहीं रहा है और न रहेगा ।
फिर भी अगर आप गुणीजनों को मेरी टिप्पणी से लगता है कि आपकी भावना आहत हुई है तो मैं खुले दिल और निर्मल भाव से मुआफी चाहता हूँ ।
ओबीओ ज़िन्दाबाद !
// ये सूचना सो प्रतिशत सही है,ये मिसरा'न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम ही जाए'साहिब-ए-दीवान शाइर 'नज़्मी'साहिब का है जो उनके दीवान में मौजूद है //
वल्लाह ! बहुत खूब ! हृदयतल से आदाब और शुक्रिया ..
मैं वस्तुतः नज़्मी साहब का नाम ही भूल गया था, क्योंकि उनका मक्ता ही याद नहीं था. लाख याद करने की कोशिश करता हुआ भी असफल रहा. फिर ऑफ़िस का काम करते हुए एकदम से टिप्पणी की थी हमने. इसी कारण जानकारी को सही हो या न हो’ कहते हुए अपनी बात कह गया था.
स्मरण कराने के लिए आपका सादर धन्यवाद
आदरणीय समर साहब ग़ज़ल विधा के जानकार हैं लेकिन, आदरणीय सुरेन्द्र कुशक्षत्रप जी, आपने उनको जिस तरह की उपाधियाँ बख़्शी हैं, वो किसी सूरत में ओबीओ की परंपरा के अनुकूल नहीं है.
इस पटल पर गुरु या उस्ताद स्वयं यह पटल ही है और सभी मिलजुल कर एक-दूसरे से सीखते-समझते हैं. भावावेश में आना और कृतज्ञता ज्ञापित करना एक बात है और अतिशयोक्ति में वाचाल हो जाना एकदम से अलहदी बात.
आदरणीय समर साहब हम सभी के अनन्य हैं, आत्मीय हैं. उनकी उस्तादी, आत्मीयता और उनके याराना के हम भी कायल हैं लेकिन ऐसी शब्दावलियों का हम प्रयोग नहीं करते जिसका हम ढंग से निर्वहन न कर पाएँ. इस मंच पर ही गुरुदेव और गुरुवर कहने के लिए उलझ पड़ने वालों की जमात भी हमने झेली है. जिन्हें ऐसा कहने से मना किया जाता था. आखिर में वे ऊल-जुलूल बकते हुए किनारे हो गये. ये कैसा भाव-प्रदर्शन था ?
कहने का अर्थ है स्पष्ट है. आप समझिएगा. ओबीओ की अपनी एक नियमावलि है, अपनी समझ है और अपनी परंपरा है. खेद है, ऐसी बातें समझाने वाले अक्सर सभी एक-एक कर व्यस्तता के घने कोहरे में घिरे हैं. फिर भी..
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online