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आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, मैंने अपनी टिप्पणी से किसी को भी आहत नहीं किया है और न वैसी मेरी प्रवृत्ति रही है । मैंने तो सिर्फ और सिर्फ मौलिकता की हिमायत की है । सादर ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,आपकी टिप्पणी और उस पर आपके ग़लत तर्क पढ़कर इंतिहाई तकलीफ़ हुई,मैं ये समझने से क़ासिर हूँ कि अचानक आपको क्या हो गया है जो आपने इस तरह की टिप्पणी दी,आपकी टिप्पणी का शिकार में भी हुआ,कि अभी मेरी ग़ज़ल 'ग़ालिब की ज़मीन में'ताज़ा ही है, आपने मेरी ग़ज़ल पर ये टिप्पणी दी होती तो मुझे इतना दुख नहीं होता,आप तो सदियों पुरानी तहज़ीब के भी ख़िलाफ़ हो गए,ये अच्छा संकेत नहीं है,मेरा आपको मश्विरा है कि आपको इसके लिए ग़ज़ल कार से और मंच से मुआफ़ी मांगना चाहिए,क्योंकि आपकी बात हर लिहाज़ से ग़लत और बे बुनियाद है ।
आदरणीय आरिफ़ साहब, आपके कहे पर आदरणीय नीलेश नूर जी ने पूरी व्याख्यात्मक टिप्पणी की है. आपको समझने में सहूलियत होगी.
जिस शेर में ग़िरह लगायी जाती है, उस शेर को हटा भी दिया जाय तो पूरी ग़ज़ल तो शायर की हुई न ?
इसी विन्दु पर आपसे एक और बात साझा करता चलूँ. ओबीओ के तरही मुशायरे में तरही मिसरे का मतले में प्रयोग करने की मनाही है. आपने सोचा है कि ऐसा क्यों है ?
वस्तुतः, मतला किसी ग़ज़ल का अभिन्न हिस्सा हुआ करता है. अगर किसी सदस्य ने अपनी ग़ज़ल के मतले में ग़िरह लगा दी तो चाह कर भी उसे हटा नहीं सकता. जबकि ग़िरह वाले शेर को वो आसानी से हटा कर पूरी ग़ज़ल को अपनी ग़ज़ल कहता हुआ कायदे से कहीं भी पढ़ सकता है. ओबीओ के पटल पर तरही मुशायरा की जब शुरुआत हो रही थी तो यह बात संचालक महोदय, प्रधान सम्पादक महोदय आदि को अच्छी तरह से मालूम थी. इसी कारण, सदस्यों के लिए ही यह नियम बनाया गया कि तरह मिसरे का प्रयोग मतले में न किया जाय.
// मैं ग़ज़ल में पूर्ण मौलिकता का पक्षधर हूँ //
इस कहे का क्या मतलब हुआ, भाई ?
एक बात और, बशीर बद्र का ही सबसे मशहूर शेर है --
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए.. .........
बताते हैं कि ये निहायत ख़ूबसूरत शेर एक तरही मुशायरे की ग़ज़ल से ही है. और इसी शेर पर ग़िरह लगायी गयी है. यह सूचना चाहे सही हो या न हो, लेकिन ये रोचक तथ्य किस बात की ओर इशारा करता है ? ..
आदरणीय निलेश जी,आदरणीय अफरोज़ सहर जी, आदरणीय शिज्जू शकूर जी, आदरणीय सौरभ पांडे जी आदाब,
मैंने अपना मंतव्य ग़ज़ल में ज़ियादा से ज़ियादा मौलिकता लाने के लिहाज से प्रकट किया था । मैं ग़ज़ल में पूर्ण मौलिकता का पक्षधर हूँ । सादर ।
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