For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल - " पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो '‘ ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22 22  22 2

वो जितना गिरता है उतना ही कोई गिर जाये तो

उसकी ही भाषा में उसको सच कोई समझाये तो

 

सूरज से कहना, मत निकले या बदली में छिप जाये

जुगनू जल के अर्थ उजाले का सबको समझाये तो

 

मैं मानूँगा ईद, दीवाली, और मना लूँ होली भी   

ग़लती करके यार मेरा इक दिन ख़ुद पे शरमाये तो

 

तेरी ख़ातिर ख़ामोशी की मैं तो क़समें खा लूँ, पर  

कोई सियासी ओछी बातों से मुझको उकसाये तो

 

कहा तुम्हारा मैनें माना, जंग नहीं है हल, लेकिन

"पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो

 

ॐ शाँति का मंत्र पाठ कर हमनें तो मन साध लिया

पाकी सेना, साथ मुज़ाहिद, सीमा पर आ जाये तो

 

सूरज तो निकलेगा तय है साथ लिये किरणें, कल भी

लेकिन आज़ादी की चाहत बदली बन छा जाये तो 
***********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1237

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 3, 2017 at 6:22am

आदरणीय काली पद भाई . आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 3, 2017 at 6:21am

आदरणीय ब्र्जेश भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये हार्दिक आभार आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 3, 2017 at 6:20am

आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया आपका ।

Comment by Afroz 'sahr' on November 2, 2017 at 9:12pm
मुझे भी जनाब अजय जी,,,
Comment by Samar kabeer on November 2, 2017 at 4:58pm
आपके आलेख का इन्तिज़ार रहेगा जनाब ।
Comment by Ajay Tiwari on November 2, 2017 at 3:47pm

आदरणीय गिरिराज जी,

बहरुल फ़साहत के लिए दी गयी लिंक काम नहीं कर रही. नयी लिंक ये है :

http://urducouncil.nic.in/ebookNew/0041-%20Bahr-ul-fasahat,%20Vol.1.

सादर

Comment by Ajay Tiwari on November 2, 2017 at 3:43pm

आदरणीय समर साहब, आदाब,

बहरे मीर के बारे में काफी अनिश्चितता है. खुद फ़ारूकी साहब इसे हिंदी बहर नहीं मानते. इस पर कल तक एक आलेख पेश करने की कोशिश करूंगा.

सादर 

Comment by Ajay Tiwari on November 2, 2017 at 3:25pm

आदरणीय अफरोज साहब,

मैं कोशिश करूंगा की जल्द ही एक आलेख प्रस्तुत करूं. जिससे जो संशय है वो शायद ख़त्म हो सके.

सादर 

Comment by Samar kabeer on November 2, 2017 at 11:27am
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,आपने तरही मुशायरे में दिए गए मिसरे की बह्र पर मेरा मत चाहा है,मैं कोशिश करता हूँ कि इस संशय को दूर कर सकूँ ।
जैसा कि जनाब अजय तिवारी साहिब ने तरही मुशायरे में और इस ग़ज़ल पर जो बह्र के बारे में जानकारी दी है मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूँ,हम अस्ल में बह्र-ए-'मीर'की वजह से उलझ जाते हैं और मुतदारिक मुसम्मन मक्तूअ मुदायफ महज़ूफ़् को बह्र-ए-मीर समझ लेते हैं,जबकि दोनों के अरकान एक होने की वजह से इसमें वही आहंग पैदा होता है जिसके बारे में तिवारी जी ने बताया है,अगर हम अरूज़ के हिसाब से देखेंगे तो बह्र-ए-मीर का कोई पता इसलिये नहीं मिलता कि मीर वाली बह्र हिन्दी की बह्र है जिसे मान देने के लिए जनाब फ़ारूक़ी साहिब ने इसे बह्र-ए-मीर का नाम दे दिया,ये वही बात हुई कि एक मशहूर आदमी अगर लड़खडाता है तो उसे लोग समझते हैं कि वो डांस कर रहा है,यही इसके बारे में भी हुआ कि 'मीर'साहिब की अज़मत के मद्दे नज़र वो बह्र जो कि अरूज़ के हिसाब से अलग हिन्दी की बह्र है को मीर के नाम से मन्सूब कर दिया गया,इस वक़्त मुझे इसका हिन्दी नाम याद नहीं आ रहा है,जैसे मुतक़ारिब को हिन्दी में 'संख्या नारी'कहा जाता है,हमें जनाब अजय तिवारी साहिब का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उन्होंने इतनी महत्वपूर्ण जानकारी हमें दी,उम्मीद है आप मुत्मइन हुए होंगे ।
Comment by Afroz 'sahr' on November 1, 2017 at 8:29pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी इस रचना पर बहुत बधाई आपको,,
साथ ही आदरणीय गुणीजनों से विशेषकर जनाब समर साहब से एक आग्रह यह है की तरही मुशायरे के दौरान "मात्रिक" बह्र और तरही मिसरे की बह्र "मुतदारिक मुसम्मन मक्तुअ मुदायफ़ महज़ूफ़" को लेकर काफी़ चर्चाएं हुईं लेकिन बह्र को लेकर संशय की स्थिती बनी रही। कई ग़ज़ल कारों ने अपने अपने तर्क अपनी समझ अनुसार प्रस्तुत किए जो की संतोष प्रद नहीं थे। अत: इस विषय को लेकर पटल पर विस्तृत चर्चा की ज़रूरत महसूस हो रही हैै। जो की सभी ग़ज़लकारों के लिए लाभदायक सिध्द हो। अत: दोनों बह्रों को लेकर जो भ्रम की स्थिती उत्पन्न हुई है । उसे दूर किया जा सके सादर,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service