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ग़ज़ल - हम रह सकें ऐसा जहाँ तलाश रहा हूँ ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   2 

तू पर उगा, मैं आसमाँ तलाश रहा हूँ

हम रह सकें ऐसा जहाँ तलाश रहा हूँ

 

ज़र्रों में माहताब का हो अक्स नुमाया

पगडंडियों में कहकशाँ तलाश रहा हूँ

 

खामोशियाँ देतीं है घुटन सच ही कहा है    

मैं इसलिये तो हमज़बाँ तलाश रहा हूँ

 

जलती हुई बस्ती की गुनहगार हवा अब    

थम जाये वहीं,.. वो बयाँ तलाश रहा हूँ

 

मैं खो चुका हूँ शह’र तेरी भीड़ में ऐसे

हालात ये, कि ज़िस्म ओ जाँ तलाश रहा हूँ

 

दरिया ए गिला हूँ, कि न बह जाये बज़्म ये

मै आज बह्र-ए- बेकराँ तलाश रहा हूँ

 

मैं थक चुका हूँ ढूँढ, वो बहिश्त सा जहाँ

तारीख़ में लिक्खा जहाँ, तलाश रहा हूँ

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 9, 2017 at 5:21pm
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब ,नई बह्र में ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
किसी भी बह्र का चुनाव मतले से होता है ,आपके मतले की कोई भी बह्र किताबों में नहीं मिलती है ।शेर 2और 4 के उला मिसरे की तकती बह्र --हजज, मुसम्मन,अखरब,मकफूफ, महजूफ (मफऊल -मफा ईल-मफाईल -फऊलन )आती है । मतले में रवानी नहीं होने से बह्र का इनतखाब नहीं हो पा रहा है ।मेरे खयाल से क़ाफिये के हिसाब से रदीफ़ में बदलाव रवानी के साथ करना पड़ेगा ।
Comment by Ajay Tiwari on November 9, 2017 at 4:20pm

आदरणीय गिरिराज जी,

1 - क्या हम - 22 ( फेलुन ) को 121  112   211  लेसक्ते हैं  या नही > इस बहर  में 112 नहीं ले सकते 

2 - 222  को 1212   1122  2211  2121  लिया जा सकता है या नहीं > इस बहर  में  1122 नहीं ले सकते 

3 - जैसा कि किताब मे लिखा है ..  1  1  समीप हो या दूर  उसे 2  लिया जा सकता है -- ये सही है या गलत > ये एक विवादास्पद कथन है. इस बहर के अधिकांश नियम मीर के इस बहर में लिखी ग़ज़लों पर आधारित हैं और मीर ने ज्यादातर दो लघु के बीच सिर्फ एक गुरु का अंतर रखा  है. 

सादर 

Comment by Ajay Tiwari on November 9, 2017 at 3:29pm

आदरणीय गिरिराज जी,
अरूज में यह पूर्व निर्धारित है कि किस बहर में कौन से जिहाफ इस्तेमाल हो सकते हैं और कौन कौन से अर्कान इस्तेमाल हो सकते है. बहरे- मुतकारिब में फइलुन (112) का इस्तेमाल नहीं होता क्योंकि मुतकारिब के किसी जिहाफ से फइलुन (112) हासिल नहीं होता. बहरे-मीर भी बहरे-मुतकारिब का ही एक आहंग है इस लिए बहरे-मीर में फइलुन (112) का इस्तेमाल नहीं होता. दूसरी  बहरों में फेलुन(22/211) और फइलुन (112) का एक दूसरे की जगह इस्तेमाल होता है लेकिन बहरे-मुतकारिब  में इसकी इजाज़त  नहीं है.

बहरे-मीर में जो (11>दो लघु) होता है वह फेलुन(22/211) का होता है. और इस (11>दो लघु) को (2>1गुरु) के वजन पर रखा सकता है. वीनस जी की किताब और मैंने जो कहा था उसमें कोई विरोध नहीं है. आपने उनकी किताब के जो पृष्ठ पोस्ट किये हैं उस में "उलटी हो गईं सब तदवीरें.." की जो तक्ती उन्होंने की है उसे देखें उसमें कहीं फइलुन (112) का इस्तेमाल नहीं है.

सादर 

 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 9, 2017 at 12:15pm
आदरणीय भन्डारी साहब। आदाब। आपने सही प्रश्न उठाया है। मैंने आदरणीय वीनस जी की पुस्तक नहीं पढ़ी। उन्होंने क्या लिखा है मुझे नहीं पता लेकिन जितना मैं जानता हूँ उसके अनुसार.11की मात्रा 2तब होती है जब 11 की मात्रा 22 के बीच में आये अर्थात 21122 आये तब दोनों मात्रायें 211 मिलकर 22 हो जायेगी परन्तु 121 मिलकर 22 नहीं होगा ये फैलुन न होकर फऊल हो जावेगा इसी प्रकार 1212 मिलकर मफाइलुन होगा। ये मैने अपने अल्प ज्ञान के अनुसार लिखा है। शेष मंच के विद्वान लोग मत प्रगट करेंगे। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 9, 2017 at 10:08am

आदरनीय समर भाई , लयात्मकता बहरे मीर की एक मात्र खासियत है , मै भी इसे मानता हूँ , इस लिहाज़ से इस गज़ल अशआर  मे निश्चित तौर पर कमी हो सकती है , मै स्वीकार कर ता हूँ और आपसे सुधार की आपेक्षा भी रखता हूँ । प्रयास की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । सलाह और सुधार आमंत्रित हैं ।

मेरा मूल प्रश्न यह है कि तक्तीअ के आधार पर क्या मेरे उदाहरण स्वरूप आ. वीनस भाई जी की किताब का उदारहण गलत है ,

या सही है ?

अर्थात -- 1 -- क्या हम - 22 ( फेलुन ) को 121  112   211  लेसक्ते हैं  या नही

              2  - 222  को 1212   1122  2211  2121  लिया जा सकता है या नहीं , ---
              3- जैसा कि किताब मे लिखा है ..  1  1  समीप हो या दूर  उसे 2  लिया जा सकता है -- ये सही है या गलत

मेरी प्रार्थना है कि  , आप सब अरूज के जानकार मिल कर इस बात का फैसला करें , ता कि एक ही मंच में हम जैसे सीखने वाले किसी एक निर्णय पर पहुँच सकें ।

  1. मेरा यह प्रश्न  इस मंच के उन सभी अरूज के जानकारो से है जिनसे हम सीखने वाले अब तक सीखते आये हैं , और मेरा उद्देश्य हमेशा से ये रहा है कि '' एक मंच मे एक ही नियम चले ''
  2. अगर मै इस् ग़ज़ल को सुधार न सका या सुधार के लिये कोई सलाह उचित न मिल पाये  तो मैं इस ग़ज़ल को खारिज मानने के लिये तैयार हूँ । बस आप सब अरूजी मिल कर ''एक मंच एक नियम '' पर बात कर लें , और फैसला सुना दें । सादर निवेदन ।

Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 8:15pm
आली जनाब समर साहिब बहुत ख़ूब लिखाआपने इस विषय पर बहुत अच्छे से समझाया आपने बहुत बहुत मुबारकबाद आपको सादर,,
Comment by Samar kabeer on November 8, 2017 at 6:52pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
ये बात तो तय है कि आपकी ये ग़ज़ल बह्र-ए-मुतदारिक पर तो क़तई नहीं है,अब अगर इसे बह्र-ए-मीर के मानकों पर देखें तो भी उस पर खरी नहीं उतरती दिखाई देती,क्योंकि बह्र-ए-मीर की सबसे ख़ास बात ये है कि वो लय में होती है,और आपकी इस ग़ज़ल का एक मिसरा भी ऐसा नहीं है जो गुनगुनाने में आ सके,अब जनाब वीनस केसरी साहिब की किताब को हवाला बनाकर देखें तो भी सिर्फ़ अरकान पुरे कर देने से ही बात नहीं बन जाती,उन अरकान पर अल्फ़ाज़ की बंदिश इतनी चुस्त चाहिए जो मीर के यहाँ पाई जाती है,जिसकी मिसाल वीनस जी ने दी है:-
'किसका क़िबला,कैसा काबा, कौन हरम हे,क्या ऐहराम'
या
'याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख्ल जो है सो इतना है'
ये मिसरे पूरी तरह लयबद्व हैं और इन्हें कई गायकों ने गया भी है, आप अपनी ग़ज़ल की कोई भी तर्ज़ बनाकर इन्हें गा कर देखिये,आप ख़ुद समझ लेंगे कि कमी कहाँ है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 8, 2017 at 1:02pm

आदरणीय सलीम भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति और सराहना क एलिये हार्दिक आभार आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 8, 2017 at 12:51pm

आदरणीय अजय भाई , मै अरूज पर कोई तर्क दे सकूँ इतना जानकार नही हूँ , जो कुछ सीखा इसी मंच से सीखा , यहीं के जानकारों से सीखा , आदरणीय वीनस भाई जी , जिनका पाठ इस मंच पर उपल्ब्ध है ( गज़ल की बात नाम से ) आप एक बार उसे पढ जाइयेगा । उन्ही की लिखी हुई किताब जो अरूज पर है और हिन्दी मे है उसके दो पेज की फोटो खींच कर अपलोड कर रहा हूँ , देखियेगा और आप जानकार इस पर चर्चा करके फैसला हमे बता दीजियेगा -- अब तक पिछली जानकारी को सही मान कर गज़लें कहा करते थे , वो अगर गलत साबित हों तो नई जानकारी कम से कम मै स्वीकार कर लूँगा -- सादर निवेदन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 8, 2017 at 12:42pm

आदरनीय काली पद भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

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