आज चुनावी रंग में, रँगे गली औ' गाँव।
प्रत्याशी हर व्यक्ति के, पकड़ रहे हैं पाँव।।1।।
पोस्टर बैनर से पटे, हैं सब दर-दीवार।
सभी मनाएँ प्रेम से, लोकतंत्र-त्यौहार।।2।।
सोच-समझ कर ही चुनें, जन प्रतिनिधि हे मीत!
सच्चे नेता यदि मिलें, लोकतंत्र की जीत।।3।।
धन-जन-बल-षडयंत्र से, वोट रहे जो मोल।
अरि वे राष्ट्र-समाज के, मत दें हिय में तोल।।4।।
जाति-धर्म के भेद हर आग्रह से हो मुक्त।
चुनें सहज नेतृत्व निज, कर्मठ सद्गुण युक्त।।5।।
मुर्गा मीट शराब पर, बेचें जो ईमान।
भला उन्हें होता कहाँ, भले-बुरे का ज्ञान।।6।।
झूठे वादों से यहाँ, भुना रहे हैं वोट।
चरणों में हर व्यक्ति के, धूर्त रहे हैं लोट।।7।।
धन-बल-पद के लोभ में, बिना पड़े हे मीत!
चुन कर जन-नेतृत्व नव, करें राष्ट्र से प्रीत।।8।।
जनता-राष्ट्र-समाज के, हित की बातें आज।
नेता जी ना भूलना, मिलते ही ये ताज।।9।।
रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सुन्दर दोहों के लिए बधाई, आ० रामबली जी
आद0 सोमेश जी रचना के भाव आप तक पहुँचे लिखना सार्थक हुआ। हृदय से आभार
आद0 आरिफ़ जी, आद0 समर भाई साहब, आद0 बहन राजेश कुमारी जी, सुरेन्द्र नाथ जी रचना पर उपस्थित होकर उत्तम सुझाव देनें और प्रोत्साहन के लिए हृदय से आभार। दरअसल समयाभाव के कारण रचना का रिवीजन किये बिना ही प्रथम(त्वरित) प्रयास ही पोस्ट कर दिया हमने। आप लोगों के कहे अनुसार संशोधन कर दिया है। पुनः देख लें यदि कोई त्रुटि लगे तो अपने सुझाव जरूर दें।कृपा होगी। सादर
आद0 रामबली जी सादर अभिवादन।चुनाव को आधार बनाकर बेह्तरीन दोहे सृजित किये आपने, और आद0 राजेश कुमारी जी का सुझाव भी उत्तम लगा। हिंदी में चुकि चेहरा होता है उस लिहाज से आद0 समर साहब की बात भी देख लीजिए। आपको इस सृजन पर कोटिश बधाइयाँ निवेदित है।
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब,
आपने मेरे सारे प्रश्नों का सरल-सरस भाषा में उत्तर देकर मेरे ज्ञान में वृद्धि करने का हार्दिक आभार । सादर ।
आद० मोहम्मद आरिफ जी
प्रत्याशी =२२२
व्यक्ति =२१
कर्मठ =२२
सद्गुण =२२
युक्त =२१
मुक्त =२१
हिंदी में चहरा नहीं लिख सकते चेहरा ही होता है जो २१२ हो ता है यहाँ दोहे के पद में सही नहीं बैठ रहा -----
रँगा गली हर गाँव।----यहाँ गली और हर गाँव अर्थात बहु वचन के लिए बात हो रही है तो रँगे आना चाहिए
या रँगी गली हर गाँव होना चाहिए रँगा शब्द गली से पहले नहीं चलेगा दोहे में एसा लग रहा है की गली के विशेषण की बात हो रही है
रँगे हुए हैं गाँव ...एसा करने से संशय खत्म हो जाएगा
चेहरे पर चेहरा लिए,---१५ मात्राएँ हो गई चेहरा ...उर्दू में 22 होगा किन्तु हिंदी में २१२ होगा
चरण रहे जो लोट।--ये पद सही नहीं बना चरण लोट रहे हैं ये अर्थ निकल रहा है
चरणों में हर व्यक्ति के ,धूर्त रहे हैं लोट ...एसा कुछ बदलाव कर सकते हैं
किन्हीं प्रलोभन आदि में, बिना पड़े हे मीत!----- किन्हीं के साथ आदि का इस्तेमाल गलत है ...चाल ,प्रलोभन आदि में ...कर सकते हो या कोई और त्रिमात्रिक संज्ञा शब्द शुरू में लगाओ
सच्चा जन-नेतृत्व चुन, करें राष्ट्र से प्रीत।।9।। यहाँ करें किया है तो विषम चरण में सच्चे जन नेतृत्व चुनें या फिर सच्चा जन नेतृत्व चुन ,कर भारत से प्रीत
ये कुछ सुधार मांग रहे हैं .बाकी सभी बढिया हैं बहुत बहुत बधाई आद० रामबली जी
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,चुनावी दोहे ख़ूब हुए बधाई स्वीकार करें ।
'वोट रहे जो मोल',--शिल्प कमज़ोर है ।
'चेहरे पर चेहरा लिए'--15 मात्रा, इसे इस तरह लिखें:-
'चहरे पर चहरा लिए' ।
सोच-समझ कर ही चुनें, जन प्रतिनिधि हे मीत!
सच्चे नेता यदि मिलें, लोकतंत्र की जीत।।3।।
आपका हर दोहा ही बहुत बेहतर है पर ये सवार्धिक पसंद आया |
रचना पर बधाई
आदरणीय रामबली गुप्ता जी आदाब,
चुनाव की हलचल , चुनावी हथकंडे और नेताओं के दोहरे चरित्र को पर्दाफाश करते बेहतरीन दोहे रचे हैं आपने , इस हेतु आपको हार्दिक बधाई ।
आपसे कुछ सीखने की निगाह से मेरे कुछ प्रश्न है इस प्रकार है:-
(1) प्रत्याशी , व्यक्ति का मात्रा भार कितना है ?
(2) कर्मठ सद्गुण का मात्रा भार कितना है ?
(3) क्या युक्त और मुक्त गुरु लघु है ?
(4)मेरी मात्रा गणनानुसार " चेहरे पर चेहरा लिए" का मात्रा भार 14 आ रहा है , क्या दोहे के विषम चरण में मात्रा भार 14 भी होता है ?
आशा है मुझे उक्त प्रश्नों का उत्तर संतोषप्रद मिलेगा और मेरे व्याकरण ज्ञान में वृद्धि होगी । सादर ।
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