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पूनम का रजनीश लजाया-रामबली गुप्ता

मत्तगयन्द सवैया

सूत्र=211×7+22; सात भगण+गागा

सुंदर पुष्प सजा तन-कंचन केश-घटा बिखराय चली है।
हैं मद पूरित नैन-सरोवर, ओष्ठ-सुधा छलकाय चली है।।
अंग सुगंध लिए सम चंदन मत्त गयंद लजाय चली है।
लूट लिया हिय चैन सखे! कटि यूँ गगरी रख हाय! चली है।।1।।

यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट और सुवासित कंचन काया।
भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम नीरद-छाया।।
देख छटा मुख की अति सुंदर, पूनम का रजनीश लजाया।
ओष्ठ-खिली कलियाँ अति कोमल, देख हिया-अलि है ललचाया।।2।।

मौलिक एवं अप्रकाशित
-रामबली गुप्ता

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Comment by नाथ सोनांचली on November 27, 2017 at 6:38pm
आद0 रामबली जी सादर अभिवादन, बेहतरीन छःन्द रचना की आपने, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर
Comment by Samar kabeer on November 23, 2017 at 10:07pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,बहुत सुंदर रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2017 at 7:39pm

आआ० रामबली जी . बहुत सुन्दर रचना हुयी है , आपसे एक निवेदन है अछे कवि  कर्म के लिए कर्ण कटु शब्दों से बचना आवश्यक है  अधर शब्द में जो लालित्य है वह ओष्ठ  में नही है  पर अधर १२ है  तो .फिर सीधे सीधे होंठ ही क्यों न कहें ----- सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2017 at 5:34pm
जनाब राम बली साहिब ,सुन्दर मत्त गयन्द सवैये छन्द हुए है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 1:02pm
आदरणीय रामबली गुप्ता जी आदाब,
बहुत ही सुंदर मत्तगयंद छंद की रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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