सब जन हैं आगोश में, धुन्ध धुएँ के आज
अतिशय कम है दृश्यता, सभी प्रभावित काज
सभी प्रभावित काज, नहीं कुछ अपने कर में
जन जीवन बेहाल, छुपे सब अपने घर में
यहीं रहा जो हाल, धुन्ध होगी और सघन
इसका एक निदान, अभी से सोचें सब जन।1।
बच्चे मानों पट्टिका, चाक आपके हाथ
चाहे इच्छा जो लिखें, उनके ऊपर नाथ
उनके ऊपर नाथ, असर वो होगा गहरा
परखें उनके भाव, यथोचित देकर पहरा
दिए जरा जो ध्यान, बनेंगे फिर वो सच्चे
कच्चे घड़े समान, सदा ही होते बच्चे ।2।
बोया पेड़ बबूल का, मिले कहाँ से आम
वक़्त रहे चेते नहीं, उसका यह परिणाम
उसका यह परिणाम, सभी बच्चे हैं बिगड़े
घिर व्यसनों के बीच, राह सुत सही न पकड़े
बचपन के दिन चार, सवारें उनको गोया
हाथ मलेंगे आप, अगर संस्कार न बोया।3।
जाना इक दिन छोड़कर, सबको अपना देह
सुंदर शुभ सत्कर्म से, जोड़ें हम सब नेह
जोड़ें हम सब नेह, रखे ना बैर किसी से
मय को दें हम त्याग, मिले सब दुःख उसी से
करें आत्म का ज्ञान, छिपा जो एक खजाना
चले ब्रह्म की ओर, जिसे सन्तों ने जाना।4।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
उत्तम..बहुत उत्तम शिक्षाप्रद रचना..बधाई
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,बहुत बढ़िया कुण्डलिया छन्द हुए,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपकी कंडलियों का आनन्द आ गया, आ० सुरेन्द्र जी।
आद0 रामबली गुप्ता जी सादर अभिवादन। रचना पर आपके सुझावों का सादर स्वागत हैं। बहुत बहुत आभार आपका।
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया और मेरी रचना को आपके द्वारा दिया गया प्यार दोनों मुझे तोष देता है। हर विधा में कुछ लिखने की तीव्र इच्छा और गुरुजन का आशीष है कि मैंने इस विधा में भी कुछ लिखने का प्रयास किया। आपने उत्साह बढ़ाया, आपका अतिशय आभार।
देश को शेष पढ़ें
सुरेन्द्र जी प्रवाह शिल्प और गेयता के हिसाब से दूसरी तीसरी और चौथी कुंडलिया बढियाँ हैं। प्रथम कुंडलिया में अटकाव है।
'धुंध होगी और सघन' ,,,,,,,,गेयता बन नही पायी
देश सब ठीक है।
हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,
बदलते मौसम के प्रभाव , शिक्षा संस्कार , सांसारिक इच्छा , बच्चों की चिंता बुरी लत आदि को रेखांकित और प्रभाव को दर्शाती सशक्त कुंडलियाँ । आपकी कंडलियों से पहला संवाद क़ायम हो रहा है । अच्छा लगा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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