अरकान :1222 1222 1222 1222
अजब सी कश्मकश से यकबयक दो चार कर देगा
तुम्हे पहचानने से वो अगर इनकार कर देगा
ज़माने में जियो खुल के जवानी साथ है जब तक
करोगे क्या बुढ़ापा जब तुम्हे लाचार कर देगा
हक़ीक़त सामने है आज यह जो, देख लेना कल
सही को भी ग़लत ये सुब्ह का अखबार कर देगा
रखें कुछ भी नहीं दिल में छुपा के आप भी मुझसे
नहीं तो शक खड़ी इक बीच में दीवार कर देगा
समझना मत कभी कमज़ोर, दुश्मन को ज़माने में
अगर मौका मिला उसको पलटके वार कर देगा
हमे अब दे रहा चेतावनी ये धुन्ध का आलम
अगर अब भी न जागे ज़ीस्त ये दुश्वार कर देगा
तबीअत इश्क़ में पहले से ही नाशाद है उसकी
तुम्हारा मुस्कुराना और भी बीमार कर देगा
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर सुखनवाजी का बहुत बहुत शुक्रिया। सादर
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पसन्द आयी। कहना सार्थक हुआ। आभार आपका।
आद0 कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी सुखनवाजी का बहुत बहुत शुक्रिया।सादर
आद0 नवीन जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पसन्द आयी। लिखना सार्थक हुआ। आपका आभार
आ. भाई सुरेंद्र जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
हमे अब दे रहा चेतावनी ये धुन्ध का आलम
अगर अब भी न जागे ज़ीस्त ये दुश्वार कर देगा...वाह आदरणीय सुरेन्द्र जी क्या खूब कहा है..बेहतरीन ग़ज़ल
अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय | हार्दिक बधाई |\
वाह बहुत खूब भाई । सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई ।
आद0 सतविंदर भाई जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफजाई का हृदय तल से आभार।
आद0 सलीम रज़ा साहब सादर अभिवादन। शैर आप तक पहुँचे, लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपका।
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