मामले की सुनवाई के उपरांत सजा तय हो चुकी थी।अब ऐलान होना शेष था।न्याय-प्रक्रिया के चौंकानेवाले तेवर के मद्दे नजर लोगों में उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि घोटाले के इस मामले में आखिर क्या सजा होती है।बाकी के हश्र सामने थे,वही ढाक के तीन पात जैसे।और न्याय की देवी आज -कल में फँसी हुई थी,क्योंकि कभी किसी वकील की मर्सिया-सभा हो रही होती, तो कभी कुछ और कारण होता।
-फिर कल?
-हाँ, अब कल सजा सुनाई जायेगी।
-वो क्यों?
-पता नहीं।हाँ मुजरिम ने कुछ कम सजा की गुहार लगायी है।
-मतलब कि यहाँ भी आरक्षण?
-अरे नहीं रे चंदू,बात कुछ और लगती है',भोला बोला।
-हाहाहा!पब्लिक सब जानती है।लगता है खिचड़ी तवे पर पक रही है ........च्च... ओर... सब...स्सा..',चंदू नजर नचाते हुए कहता चला गया।
-..और महक हवा में तैर रही है,हेहेहे---',भोला ने चुटकी ली।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
शुक्रिया मुसाफिर जी।
बहुत-बहुत आभार आदरणीया राजेश जी।
बेहतरीन कथा, हार्दिक बधाई।
हर तरफ मिली भगत सांठ गाँठ कोई सा महकमा नहीं बचा इस बीमारी से .न्याय प्रक्रिया पर बढिया कटाक्ष करती हुई लघु कथा .बहुत बहुत बधाई आद० मनन जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीयआरिफ जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर जी। 'मामला' शब्द तो अब पुराना भी हो चुका है,सादर।
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहित जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय उस्मानीजी।
आद0 मनन कुमार जी सादर अभिवादन। बेहतरीन लघुकथ समसामयिक बातों के संदर्भ में,बहुत बहुत बधाई आपको।
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