-धन्यवाद, पैसे खाते में आ गये।प्रयाग में विमोचन हो जाये?
-अच्छा रहेगा।
-हॉल वगैरह बुक कर दिया है।बस कुछ लोगों की व्यवस्था आप करा लीजिये।
-आपके प्रकाशन की और पुस्तकें भी हैं न?
-थीं,पर अब उनका विमोचन शायद अलग से हो।
-क्यूँ?
-लेखकों की भागीदारी पूरी नहीं हो रही है।
-फिर?
-यह कार्यक्रम आपका ही होगा।सम्मानित भी हो जायेंगे आप।
-बात तो समूह में पुस्तकों के विमोचन की थी।
-सम्भव नहीं है।
-फिर अलग से देखेंगे।मेरे पैसे में कितनी प्रतियाँ छपेंगी?
-दो सौ।
-छाप दीजिये',लेखक-कवि की वाणी सुदृढ़ थी।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर नमस्कार। बढ़िया लघुकथा, व्यंग कसते हुए, आजकल बहुत सम्पादक और लेखक हो गयेऐं।बधाई इस प्रस्तुति पर।
आदरणीय मनन जी, कथा के माध्यम से आज के साहित्यिक परिदृश्य पर अच्छी टिप्पणी की है. हार्दिक बधाई
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन लघुकथा । आजकल यही सबकुछ चल रहा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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