ब्रेन वाश
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-हाँ, मैंने कहा था।
-क्यूँ?
-क्योंकि मुझे असहिणुता दिखी थी।
-कैसे?
-पूरे देश में हो-हल्ला मचा हुआ था।अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही थी।
-कैसी आजादी?'मातृभूमि को मुर्दा कहने और इसके टुकड़े होने' के नारों की आजादी?
-वे लोग व्यवस्था से क्षुब्ध थे।
-और यह बताने वाले दुश्मन देश की नुमाइंदे थे,कि नहीं?
-वह तो बाद में पता चला न?
-तो पहले क्या आपलोग घास छील रहे थे,कि धूप में बाल पका रहे थे?
-अरे भाई,तुमुल जन-रव ने मुझे घसीट लिया।मैंने अपना तमगा लौटाने का ऐलान भी कर दिया।
-और लौट भी गया?
-हाँ, किसीने जरा भी मान-मनौवल नहीं किया कि इतना बड़ा लेखक तमगा वापिस कर रहा है,रोको उसे।
-मलाल भी है?
-जरूर है।
-बहुत लोगों ने तब ही जाना कि आप भी कभी पुरस्कृत हुए थे।
-छोड़ो भी।
-क्यूँ?
-जोश में होश पाले नहीं रहे,वरना ऐसी -वैसी कोई बात थी नहीं।
-धन्य हो लेखक भाई।अरे गनीमत है कि तुम जज न हुए,वरना कितने फैसले बदलने पड़ते।
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Comment
ये है गागर में सागर भरने वाली बात..बहुत शानदार चित्रण किया है आदरणीय।
आपकी लघु कथा पढ़ कर आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई।
बढ़िया लघुकथा है आ. मनन जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
असहिणुता = असहिष्णुता
आदरणीय आरिफ जी,शुक्रिया।
आदरणीय समर जी नमस्ते,शुक्रिया।कथा आपको जँची,यह मेरे लिए ख़ुशी की बात है।
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,
बहुत ही कटाक्षपूर्ण कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी,आजकल आपकी लघुकथाएं दिल को छूने वाली हो रही हैं,बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति पर ।
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शहजाद उस्मानी जी।
बहुत बढ़िया यथार्थपूर्ण कटाक्षपूर्ण रचना। फैसले लिए नहीं जाते, बल्कि फैसले तो लेने पड़ते हैं या फैसले थोपे जाते हैं चोंचले करने के लिए या अवसरवादी स्वार्थपूर्ति के लिए जनता या सरकार या फिर दोनों को ही उल्लू बनाने के लिए या उनकी चमचागिरी करने के लिए! बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मनन कुमार सिंह साहिब।
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