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आज फिर वो मुझे याद आने लगे ।
भूलने में जिसे थे ज़माने लगे ।।
कर गई है असर वो मिरे जख़्म तक ।
इस तरह क्यूँ ग़ज़ल गुनगुनाने लगे ।।
दिल जलाने की साज़िश बयां हो गयी ।
बेसबब आप जब मुस्कुराने लगे ।।
अब बता दीजिये क्या ख़ता हो गयी ।
ख़ाब में इस तरह क्यों सताने लगे ।।
जिनको चलना सिखाया था मैंने कभी ।
राह मुझको वही अब बताने लगे ।।
तेरे आने की उनको खबर क्या मिली।
असमा लोग सर पे उठाने लगे ।।
वो निभाएंगे कैसे मिरे इश्क़ को ।
कुछ ख़यालात उनके पुराने लगे।।
इक मुलाकत भी थी जरूरी सनम ।
मानता आपके सौ बहाने लगे ।।
मैकदा जाइये मैकदा खुल गया ।
देखिये होश में आप आने लगे ।।
जब भी देखा मैं दायां तो बायां दिखा।
आईने सच भला कब दिखाने लगे ।।
रुख से पर्दा हटा तो कयामत हुई ।
जुल्म फिर आशिकों पे वो ढाने लगे ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 मु0 आरिफ साहब सादर आभार । कबीर सर आजकल ओबीओ में नहीं आ पा रहे हैं । बाकी कोई इस्लाह देने वाला व्यक्ति लगता है ओबीओ में नहीं है । यह ओबीओ की लोकप्रियता पर संकट का बादल है ।
खूब सुन्दर रचना
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
आ0 सुरेंद्र नाथ सिंह कुश क्षत्रप जी सादर आभार
आ0 तेजवीर सिंह जी सादर आभार ।
आद0 नवीन जी सादर अभिवादन।बेहतरीन ग़ज़ल कहि आपने, बधाई आपको, इस प्रस्तुति पर।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।
जिनको चलना सिखाया था मैंने कभी ।
राह मुझको वही अब बताने लगे ।।
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