221 2121 1221 212
सच्ची जो बात है वो छुपाई न जाएगी ।
झूठी कसम तो आप की खाई न जाएगी ।।
बस हादसे ही हादसे मिलते रहे मुझे ।
लिक्खी खुदा की बात मिटाई न जाएगी ।।
चेहरे हैं बेनकाब यहाँ कातिलों के अब।
लेकिन सजाये मौत सुनाई न जाएगी ।।
ज़ाहिद खुदा की ओर मुखातिब न कर मुझे ।
काफ़िर हूँ मैं नमाज़ पढ़ाई न जाएगी ।।
कितने थे बेकरार तेरे इंतजार में ।
बरसात की वो रात भुलाई न जाएगी ।।
देखा है मैंने आपको जब से निगाह भर ।
ऐसी लगी है आग बुझाई न जाएगी ।।
मायूस मैकदे से यूँ लौटे तमाम रिन्द ।
शायद अभी शराब पिलाई न जयेगी ।।
गुजरेगी उम्र आपकी बस तिश्नगी के साथ ।
चिलमन जो आप से ये हटाई न जाएगी ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 ब्रजेश कुमार भाई समर कबीर साहब ओबीओ के ही नही बल्कि ग़ज़ल के बादशाह हैं । उनकी इस्लाह बहुत कीमती है मेरे लिए ।
आ0 कबीर सर ओबीओ में उपस्थित देखकर अति प्रसन्नता हुई । ईश्वर आपको ऐसे ही स्वस्थ और प्रसन्न चित्त रखें । मैं ग़ज़ल को सुधरता हूँ । मेरा सादर नमन । विशेष आभार ।
आदरणीय त्रिपाठी जी...बहुत खूब ग़ज़ल कही..आदरणीय समर जी की टिप्पड़ी बड़ी ज्ञान वर्धक है..सादर
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'जो बात है सही वो छुपाई न जाएगी'
इस मिसरे में 'सही' शब्द के बारे में आपको कुछ बताना चाहूंगा,ये शब्द उर्दू में दो तरह से लिखा जाता है, एक तो 'सीन',छोटी 'ह्','ये',इसका अर्थ है "सीधा" और दूसरा 'सुवाद',बड़ी 'ह्','ये',और फिर बड़ी 'ह' इस तरह ये शब्द बना "सहीह",इसका अर्थ है "दुरुस्त",आपके मिसरे में जो शब्द लिया है वो 'सहीह'होना चाहिये, इस लिहाज़ से आप मतले का ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
'सच्ची जो बात है वो छुपाई न जाएगी'
'काफ़िर हूँ मैं नमाज़ पढ़ाई न जाएगी'
इस मिसरे में 'नमाज़ पढ़ाई'शब्द ग़लत इसलिये है कि नमाज़ हर व्यक्ति नहीं पढ़ा सकता,उसके लिए इमाम होता है,यहाँ 'ननाज़ पढ़ी न जाएगी' का भाव है, इस मिसरे को आप ख़ुद बदलने का प्रयास करें ।
'देकग जो उसने आपको जबसे निगाह भर'
इस मिसरे में भाव स्पष्ट नहीं है,किसने देखा है? इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
'देखा है मैंने आपको जबसे निगाह भर'
'यूँ मैकदा से होके हैं लौटे तमाम रिन्द'
इस मिसरे ने भाव के साथ शिल्प भी कमज़ोर है ,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
'मायूस मैकदे से यूँ लौटे तमाम रिन्द'
'चिल्मन तो अपने आप हटाई न जाएगी'
इस मिसरे में शिल्प के साथ व्याकरण दोष है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'चिल्मन ये आपसे जो हटाई न जाएगी'
आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।
चेहरे हैं बेनकाब यहाँ कातिलों के अब।
लेकिन सजाये मौत सुनाई न जाएगी ।।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online