इंडिया गेट पर गुलाब सिंह अपने औटो से जा रहा था। तभी वहाँ तैनात हवलदार रोशन ने उसे रोक दिया।
"आज इधर से वाहनों के लिये मार्ग बंद है। केवल पैदल यात्री ही जा सकते हैं"।
"भाई, आज अचानक ऐसा क्यों"?
"इस में इतना चोंकने वाली क्या बात है। आज मंत्री जी की रैली है"।
"वह किसलिये"?
"मंत्री जी के दामाद को गिरफ़्तार ना किया जाय, इसलिये"।
"ऐसा क्या किया है उनके दामाद ने"?
"उनका दामाद दरोगा है, उसने अपने ही मातहत एक हवलदार की पत्नी के साथ बलात्कार किया था"।
"तो फ़िर तो उसे गिरफ़्तार होना ही चाहिये"?
"पर मंत्री जी का कहना है कि वह औरत चरित्रहीन थी।पैसे लेकर धंधा करती थी"।
"पर इसका फ़ैसला तो अदालत करेगी"?
"इसीलिये तो यह सब नाटक हो रहा है ताकि अदालत पर दबाव बने"।
"अदालत को तो सबूत चाहिये"?
"उसके लिये भी मंत्री जी ने बीस बाईस लोगों द्वारा हलफ़नामे दाखिल कराये हैं कि उन लोगों ने भी उस औरत से पैसे देकर शारीरिक संबंध बनाये थे"।
"पर उस औरत का क्या कहना है"?
"उसका तो एक ही बयान हुआ था एस पी के आगे। उसके बाद तो इतनी बदनामी होने के बाद उसने आत्महत्या ही कर ली"।
"और उसका आदमी"?
"मंत्री जी ने पहले तो उसे सब्ज़वाग दिखाये। दरोगा बनाने का लालच दिया। नहीं माना तो भीड़ से पिटवा दिया। अस्पताल में जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रहा है"।
"भाई, तुम भी तो पुलिस में हो तुम्हें क्या लगता है"?
"देख भाई,अब सरकारी नौकरी का एक ही उसूल है। आँख और कान खुले रखो, मुँह बंद रखो। नौकरी पक्की"।
"भाई, आजकल यह क्या हो रहा है, हमारा यह देश किस ओर जा रहा है"?
"भाई, मेरे विचार से यह देश अब लोक तंत्र से नहीं भीड़ तंत्र से चलाया जा रहा है"।
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मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। अच्छा व्यंग समाज मे भीड़ के द्वारा दबाव बनाने की नीति पर। इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
कड़वे सच को शाब्दिक करती बढ़िया भावपूर्ण विचारोत्तेजक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब ,सियासत दानों पर चोट कसती उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
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